kabeerWHERE cd.courseId=2 AND cd.subId=35 AND chapterSlug='kabeer' and status=1SELECT ex_no,page_number,question,question_no,id,chapter,solution FROM question_mgmt as q WHERE courseId='2' AND subId='35' AND chapterId='1163' AND ex_no!=0 AND status=1 ORDER BY ex_no,CAST(question_no AS UNSIGNED) CBSE Class 11 Free NCERT Book Solution for Hindi - Aroh

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Chapter 11 : Kabeer


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Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

कबीर के ससार में ईश्वर एक है इसके समथर्न में निम्न तर्क दिए थे –
- सभी मानव एक ही मिटी से अथार्त बम्ह द्वारा निर्मित था I
- परमात्मा लकड़ी में अग्नि की तरह व्याप्त रहता था I
- एक ही मिटी से सब बर्तन अथार्त सभी जीवो निर्माण हुआ था I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

मानव शरीर का निर्माण अग्नि , वायु, जल , भू आकाश पच तत्वों से हुआ था I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

कबीर की ससार में ईश्वर का स्वरूप अविनाशी था कबीर दास के कहने का तात्पर्य यह था कि जिस प्रकार लकड़ी में अग्नि निवास करती थी ठीक उसी प्रकार परमात्मा सभी जीवो में ह्र्दय में आत्मा स्वरूप में व्याप्त था ईश्वर सर्वयापक , अजर अमर और अविनाशी थे I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

कबीर अपने आप को दीवाना कहता था क्योकि उनके अनुसार ईश्वर निगुर्ण , निराकार अजय अमर और अविनाशी थे ओर उन्होंने ने इस परमात्मा का आत्म साश्रात्कार कर लिया था अत : ईश्वर के सच्चे भक्त होने के कारण दीवाने थे I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

कबीरदास इस संसार को बोराया हुआ था अथार्त पागलपन की हद तक पहुचा हुआ था बताते थे उनका ऐसा मानना इसलिए थे क्योकि संसार के लोग झूठी बातो पर तो विश्वास कर लेते थे ऐसे लोगो को सत्य और असत्य का ज्ञान नहीं होता था I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगो की सबसे बड़ी कमी ईश्वर तत्व से कोसो दूर रहने को माना था ऐसे लोग जेसे पत्थर पूजा , तीर्थ व्रत करना नमाज पढना छापा तिलक लगाना में उलझे रहते थे I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

अज्ञानी गुरु माया अहकार धार्मिक पाखंडो और आडकर में विश्वास रखते थे और इसी प्रकार की शिक्षा वे अपने शिष्यों को देते थे इस प्रकार और कारण ऐसे गुरुओं की शरण में जाने से शिष्य सही ज्ञान नहीं प्राप्त करते थे I


Exercise 1 ( Page No. : 132 )
Q:
A:

टोपी पहिरे माला पहिरे , छाप तिलक अनुगाना I साखी सब्दहि गावत भूले , आतम खबरि न जाना I इन पक्तियों का आशय यह है कि हिन्दू और मुसलमान दोनोंधर्मो के लोग बाह्य आड़बर में उलझे रहते थे कोई टोपी पहनता था तो कोई तिलक लगाता था और अपने अपने अहकार का प्रदर्शन करते थे I वे साखी सबद आदि गाकर अपने आत्म स्वरूप को ही भूल जाते थे I