लेखक ने इस पाठ में गानपन का उल्लेख करता है गानपन का अर्थ है गाने से मिलने वाली मिठास और मस्ती जिस प्रकार मनुष्य कहलाने के लिए मनुष्यता के गुणधर्म का होना जरुरी होता था उसी प्रकार संगीत में भी गानपन आवश्यक था I
लताजी के गायन की निम्नाकित विशेषताओ की और लेखक ने पाठको का ध्यान आकर्षित करता था I
1. गनापन व सुरीलापन वह मिठास जो श्रोता को मस्त कर देते थे I
2. उच्चारण की शुद्ता लता के गाने के उच्चारण की शुद्ता पाई जाती थी I
3. स्वरों की निर्मलता लता के गायन की मुख्य विशेषता उनके गायन की निर्मलता थी I
एक संगीतज्ञ होने के कारण श्याद कुमार गधर्व सही भी हो सकते थे परतु में उनकी इस बात से सहमत नही था क्योकि उनके द्वारा ये मेरे वतन के लोगो गाना इतने भाव पूर्ण और करुणता से गाया था कि वहा बैठे प्रधानमत्री जवारलाल नेहरु की आँखों में पानी ले आया था I
संगीत में अपार सभावनाय छिपी थी यह श्रेत्र बहुत ही व्यापक और विस्तृत था इसमें बहुत से राग , धुनें ताल , यत्र और स्वर अनछुए रह जाते थे बहुत से सुधार होने अभी शेष था अभी कई सारे नए प्रयोग होने बाकि थे वर्तमान फ़िल्मी संगीत को देखे तों हमें पता चलता था कि रोज़ नई धुनें नए प्रयोग और नए स्वर सुनने को मिलते थे I
कुमार गधर्व इस आरोप से सहमत नहीं था कि चित्रपट संगीत ने लोगो के कान बिगाड़ दिए थे उनके अनुसार चित्रपट संगीत से संगीत में सुधार आया था इसके कारण ही लोगो को इसके सुरीलेपन की समझ होती थी आज संगीत में लोगो की रूचि बद रही थी आज सामान्य जन भी इसकी लय की सुश्र्मता को समझ थे है I
कुमार गधर्व के अनुसार शास्त्रीय एव चित्रपट दोनों तरह के संगीतो के महत्व का आधार रजकता होना था इस बात का महत्व होना था आनद देने का सामर्थ्य किस गाने में कितना था में भी लेखक के मत से पूरी तरह सहमत था कि के एक अच्छे संगीत में मधुरता , गानपन और जुडाव होना था I