रात्रि समय आसमान ऐसा प्रतीत होता है मानो सारे तारे बिखकर नीचे टिमटिमा रहे है दूर ढलान लेती तराई प्र सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर सी बना रहे है रात के अन्धकार में सितारों से झिलमिलाता गंतोक लेखिका को जादुई एहसास होता है I
सेलनियो को प्रकति कि अलोपिक छटा अनुभव से सेलानियो को प्रकति व स्थान के दर्शन कराता था जो अपनी जानकारी व अनुभव से सेलानियो को प्रकति व स्थान के दर्शन कराता था कुशल गाइड इस बात का ध्यान रखता था कि भ्रमणकर्ता की रूचि पूरी यात्रा में बनी रहे थे ताकि भ्रमणकर्ता के भ्रमण करने का प्रयोजन सफल होता था I
पत्थरों पर बैठकर श्रमिक महिलाएं पत्थर तोडती थी उनके हाथो में कुदाल व हथोड़े होते थे कइयो की पीठ पर बंधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते थे और वे काम करते रहते थे हरे भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पतित्त्याँ तोड़ते थे बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते थे I
पर्वत अपनी स्वभाविक सुंदरता खो रहे थे कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक केमिकल व रसायन होते थे जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था साथ में घरो से निकला दूषित जल भी नदियों में ही हो जाता है जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातर दूषित होती थी जो बाढ़ को आमत्रित करता था हमें अधिक से अधिक पेंड लगवाना चाहिए था I
आज की पीढ़ी की द्वारा प्रकति को प्रदूषित किया जाता था प्रदूषण का मौसम प्र असर साफ़ दिखाई देने लगाता था प्रदूषण के चलते जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता था कही पर बारिश हो जाती थी तो किसी स्थान पर अप्रत्याशित रूप से सूखा पड जाता था गर्नी के मौसम में गर्मी की अधिकता देखते बनती थी कई बार पारा अपने सारे रिकॉर्ड को तोड़ चुका होता था I
कटाओ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान था क्योकि अभी यह पर्यटक स्थल नही बना देता था यदि कोई दुकान होती थी तो वहा सेलनियो का अधिक आगमन शुरू हो जाता था और वे जमा होकर खाते पीते गंदगी फेलाते इसमें गंदगी तथा वहा पर वाहनों के अधिक प्रयोग से वायु में प्रदूषण बढ़ जाता था I
प्रकति सर्दियों में बर्फ के रूप में जल सग्रह करती थी और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि त्राहि मचती थी उस समय यही बर्फ शिलाए पिघलकर जलधारा बन के नदियों को भर देता था नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे गाँवों में जल ससाधन के र्रोप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तत में सचाई करते रहते थे I
साना साना हाथ जोड़ी पाठ में देश की सीमा प्र तेनात फोजियो की चर्चा की जाती थी सेनिक देश की सीमाओ की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहते थे देश की सीमा पर बैठे फोजी प्रकति के प्रकोप को सहन करते थे वह वहा सीमा की रक्षा के लिए तेनात रहते थे और हम यहा पर आरम से घर बैठे रहते थे और अपनी जान हथेली पर रखकर जीते थे I
गतोक को सुंदर बनाने के लिए वहा के निवासियों ने विपरीत अतिरिक्त श्रम किया था पहाड़ी श्रेत्र के कारण पहाडो को काटकर रास्ता बनाना पड़ता था पत्थरों पर बैठकर ओरते पत्थर तोडती थी उनके हाथो में कुदाल व हथोड़े होते थे I
यदि किसी बुद्धीस्ट की मृत्यु होती थी तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाए फहराई जाती थी कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाए फहराई जाती थी I
1. वहाँ के लोग मेहनतकश लोग थे व जीवन काफी मुश्किलों भरा होता था I
2. नर्गो के अनुसार सिक्किम में घाटिया सारे रास्ते हिमालय की गहनतम घाटिया और फूलो से लदी वादिया मिलती थी I
3. सिक्किम में भी भारत की ही तरह घूमते चक्र के रूप में आस्थाए विश्ववास अधविश्वास पाप पुण्य की अवधारणाए व कल्पनाए एक जेसी होती है I
4. घाटियों का सोंदर्य देखते ही बनता था नर्गो ने बताया कि वहा की खूबसूरती स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरती से तुलना की जा सकती थी I
लेखिका सिक्किम में घूमती हुई कवि लोग स्टॉक नाम की जगह पर जाती थी लोग स्टॉक के घूमते चक्र के बारे में जितने ने बताया कि यह धर्म चक्र था इसको घुमाने ने सारे पाप धुल जाते थे मैदानी श्रेत्र में गंगा के विषय में ऐसी धारणा होती थी I
1. रास्ते में आए प्रत्येक द्रश्य से पर्यटकों को आवगत करता था I
2. वहा के जन – जीवन की दिनचर्या से आवगत कराते थे I
3. वह यत्रियो को रास्ते में आने वाले दर्शनीय स्थलों की जानकारी देता था I
4. एक कुशल गाइड को चाहिए कि वो भ्रमणकर्ता के हर प्रश्नों के उत्त्तर देने में सक्षम देता था I
इस यात्रा व्रतात में लेखिका ने हिमालय के पल पत्र परिवर्तित होते रूप को देखा था ज्यो ज्यो ऊँचाई प्र चढ़ते जाए हिमालय विशाल से विशालतर होता चला जाता था हिमालय कही चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े होते है कही हल्का पीलापन लिए हुए प्रतीत होता था I
हिमालय का स्वरूप पल पल बदलता था इस वातावरण में उसको अद्भुत शान्ति प्राप्त हो रही है इ अद्भुत व अनूठे नजारों ने लेखिका को पल मात्र में ही जीवन की शक्ति का अहसास करा देता था उसे ऐसा लगाने लगता जेसे वह देश व काल की सरहदों से दूर बहती थी I
लेखिका हिमालय यात्रा के दोरान सोंदर्य के अलोकिक आनन्द में डूबी हुई है परन्तु जीवन के कुछ सत्य जो वह इस आनन्द में भूल चुकी है वे पत्थर तोड़कर संकरे रास्तो को चोडा करते है सात आठ साल के बच्चो को रोज तीन साढे तीन किलोमीटर का सफर तय कर स्कूल जाना पढ़ता था I