सोनुजूही में लगी पीली कली को देखकर लेखिका के मन में छोटे से जीव गिलहरी की याद आ गई थी जिसे वह गिल्लू कहती है I
कोए को समादरित इसलिए कहा गया था क्योकि वह छत पर बैठकर अपनी आवाज से प्रियजनों के आने की सुचना देता था क्योकि इसकी आवाज बहुत कडवी होती थी I
लेखिका गिलहरी के घायल बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आई उसका घाव रुई से पोछा उस पर पेसिलिन दवा लगाई फिर उसके मुँह में दूध डालने की कोशिश की परन्तु उसका मुँह खुल नही सका था I
लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्ल्लू उनके पेरो के पास आकर खेलता फिर सर से पर्दे पर चढ़ जाता था फिर उसी तेजी से उतर जाता था I
बाहर की गिलहरियाँ खिड़की के जाली के पास बैठ कर चिक्र चिक्र करती थी उन्हें देखकर गिल्लू उनके पास आकर बैठ जाता था उसको इस तरह बाहर निहारते हुए देखकर लेखिका ने इसे मुक्त करा आवश्यक समझा था I
लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू उनके सिराहने बैठ जाता और नन्हे पंजो से उनके बालो को सहलाता रहता था I इस प्रकार वह सच्चे अर्थो में परिचारिका की भूमिका निभा रहा है
गिल्लू ने दिन भर कुछ भी नही खाया न बाहर गया अंत समय की मुश्किल के बाद भी वह झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर आ गया और अपने ठडे पंजो से उगली पकड़कर हाथ से चिपक गया था जिसे पहले उसने घायल अवस्था में पकड़ा है I
इस कथन का आशय यह था कि सुबह होते होते गिल्लू की मृत्यु हो गई थी और वह हमेशा के लिए सो गया ताकि यह कही और जन्म लेकर नए जीवन को पा सकता था I
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि बनाई गई थी क्योकि यह लता गिल्लू को बहुत पंसद है और साथ ही लेखिका को विश्वास है कि इस छोटे से जीव को इस बेल पर लगे फूल के रूप में देखती थी I