इस फिल्म को देखकर कविता जेसा अनुभूति होती है क्योकि यह फिल्म एक कवि की कोमल भावनाओ की प्रस्तुती होती है जिससे फिल्म जरिए उतारा जाता है I
यह फिल्म एक सामान्य कोटि की मनोरजक फिल्म न होकर एक उच्च कोटि की साहितियक फिल्म है इस फिल्म की करुणा को पेसे के तराजू में तोल रहे है और कोई जोखिम उठाने को तैयार नही होते है इसलिए तीसरी कसम फिल्म को खरीददार नही मिलता है I
शेलेन्दर के अनुसार हर कलाकार का यह कर्तव्य होता था कि वह दर्शको की रुचियों को उपर उठाने का प्रयास करता है न दर्शको का नाम लेकर सस्ता और उथला मनोंरजन उनपर थोपने का प्रयास नही करता है I
फिल्मो में त्रासद स्थितियो का चित्राकन ग्लोरिफाई इसलिए कर दिया जाता था जिससे कि दर्शको का भावनात्मक शोषण किया जा सकता था उन्हें फिल्म देखने के लिए मजबूर और आकर्षित किया जाता है I
राज कपूर वैसे भी आँखों से बात करने वाले कलाकार माने जाते है शेलेन्द्र ने राजकपूर की इन्ही भावनाओ को अपने गीतों से शब्दों की अभिव्यक्ति प्रदान करता है I
शोमैन ऐसे व्यक्ति को कहते थे जो अपने ही जीवनकाल में एक किदवती बन चुका था जिसका नाम सुनकर ही फिल्मे बिकती थी और उसका नाम ही दर्शक को सिनेमाघर तक खीच सकते थे लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहते थे I
फिल्म तीसरी कसम के गीत रातो दसो दिशाओ से कहते थे अपनी कहानिया पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति इसलिए की क्योकि उनके अनुसाए सहितिय्क सोच और जनसामान्य की सोच में अंतर होता था I
राजकपूर जेसे अनुभवी निर्माता निर्देशक के आगाह करने के बावजूद शेलेन्द फिल्म बनाना चाहते है क्योकि उन्हें धन सम्मान की कामना नही है वे तो केवल अपनी आत्मतुष्टि अपनी मन की भावनाओ की अभिव्यक्ति और दर्शको के मन के छूना होता है I
तीसरी कसम फिल्म में हीरामन का किरदार कुव्ह इस तरह निभाया कि जेसे उन्होंने हीरामन को आत्मसात करते है अपने आप को उसी पर हावी नही होने देता है और कलाकार की यह सबसे ब्स्दी उपलब्धि है I
तीसरी कसम शुद्ध साहितिय्क फिल्म है इस कहानी के मूल स्वरूप में जरा भी बदलाव नही किया गया है शेलेन्द ने इस फिल्म में दर्शको के लिए किसी भी प्रकार के काल्पनिक मनोरंजन को जबरदस्ती ठूसा नही है I
शेलेन्द एक भावनात्मक और आदर्श कवि होने के कारण उनके गीत सरल , सहज सदेशात्मक और मन को चूनेवाले होते है उनके गीतों में गहराई के साथ आदमी से जुडाव भी होता है I
तीसरी कसम फिल्म निर्माता के रूप में शेलेन्द्र की पहली और अतिम फिल्म है यह फिल्म उन्होंने बिना किसी व्यावहासिक लाभ प्रसिद्धी की कामना न करते थे केवल अपनी आत्मसतुष्टि के लिए बनाई है उनके सीधे सीधे व्यक्तित्व की छाप उनकी फिल्म के किरदार हीरामन में बखूबी दिखाई थीI
शेलेन्द्र अपने जीवन में सीधे सरल व्यावासिकता से कोसो दूर सिद्धतवादी व्यक्ति है यह सब बाते उनकी इस फिल्म में भी झलकती थी जिस प्रकार शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके जीवन की विशेषता है I
में लेखक के विचार से पूरी तरह सहमत था क्योकि इस फिल्म को देखकर कविता जेसी अनुभूति होती थी यह फिल्म कवि शेलेन्द्र की कोमल भावनाओ की प्रस्तुती है जिसे फिल्म के जरिए उतारा गया है I