कवि अपने कवि – कर्म को किसान के कृषि कर्म जेसा ही बता रहा हु कवि कहते है कि में भी एक प्रकार का किसान हु किसान के खेत के समान उसके पास चोकोर कागज़ का पना होता है जेसे किसान जमीन पर बीज , खाद , जल डालता है उसी प्रकार में कागज़ पर शब्द भाव बोता हु
रचना के सद्भ में अधड का आशय भावनात्मक आधी से है जो किसी के मन में अचानक किसी वस्तु , व्यक्ति , भाव , स्थिति को देखकर उत्पन हो जाती है जेसे कोंच पक्षी के करुण विलाप को सुनकर वाल्मीकि के मन में काव्य उत्पन होता है I
कवि ने रचनाकर्म अथार्त कविता को रस को अश्रयपात्र कहा है काव्य का आनद दिव्य व् कालजयी होता है कविता में रस और भाव न तो कम रहेता है ये हमेशा मीठे सोते की तरह तृप्ति , सुख एव आनंद प्रदान होता है I
1.छोटा मेरा खेत में खेती के रूपक काव्य रचना प्रक्रिया को स्पष्ट किया जाता है जिस प्रकार धरती में बीज बोया जाता है और वह बीज विभिन्न रसायनों – हवा , पानी , आदि को पीकर तथा विभिन्न चरणों से गुजरकर बड़ा होता जाता है उसी प्रकार जब कभी को किसी भाव का बीज मिलता है तब कवि उससे आत्मसात करता है I
2 साहितियक कृति से जो अलोकिक रस –धारा फूटती है उसमे निहित सोदर्य , रस औरभाव न तो कम होता है न नुकसान होता है उसका बीज तो श्रणभर में बोया जाता है किन्तु उस रोपाई
परिणाम यह होता है कि यह रस – धारा अनत काल तक चलने वाली कटाई के रूप में आनद देता है I
इन कविता में द्रश्य बिब उकेरे गए है I
- छोटा मेरा खेत चोकोना - कागज़ का एक पन्ना
- शब्द के अंकुर फूटे
- पलव – पुष्पों से नमित
- झूमने लगे फल
- नभ में पाती – बधे बगुलों के पख
भावो रूपी आधी
- विचार रुपी बीज
- पलव – पुष्पों से निमित हुआ विशेष
- कजराले बादलो की छाई नभ छाया
- तेरती साँझ की सतेज श्वेत काया