मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्ला खा का जन्म डूमराव गाव में हि हुआ है इसके अलावा शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता था रीड अंदर से पोली होती थी जिसके सहारे शहनाई को फूका जाता था I
शहनाई ऐसा वाद्य था जिसे मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता बिस्मिल्ला खा शहनाई बजाते है और शहनाई वादक के रूप में उनका स्थान सर्ब होता था 15 अगस्त 26जनवरी शादी अथवा मंदिर जेसे मागलिक स्थलों में शहनाई बजाकर शहनाई के स्थान में इन्होने प्रसिद्ध प्राप्त की थी I
सुषिर वादय का अभिप्राय होता है सुराख़ वाले वादय जिन्हें फूक मारकर बजाया जाता था शहनाई अन्य सभी सुषिर वादयो में श्रेष्ट था
(क) यहाँ बिसिमल्ला खा ने सूर तथा कपड़े से तुलना करते हुए सुर को अधिक मूल्यवान बतात्ता था क्योकि कपड़ा एक बार फट जाए तो दुबारा सिल देने से ठीक हो सकता था परन्तु किसी का फटा हुआ सूर कभी थिक नही हो सकता था I
(ख) बिसिमल्ला खा पाँचों वक्त नमाज के बाद खुदा से सच्चा सुर पाने की प्राथर्ना सूर करते है वे खुदा से कहते थे कि उन्हें इतना प्रभावशाली सच्चा सूर था और यही उनके सूर की कामयाबी थी I
काशी की अनेको परम्पराय धीरे धीरे लुप्त होती थी पहले काशी खानपान की चीजों के लिए विख्यात हुआ करता है परन्तु अब वह बात नही रहती थी कुलसुम की छन्न करती संगीतात्मक कचोडी और देशी घी की जलेबी आज नही थी अब पहले जेसा प्यार और भाईचारा हिन्दुओ और मुसलमानों के बीच देखने को नही मिलता था I
(क) उनका धर्म मुस्लिम है वे अपने मजअब के प्रति समर्पित है पांचो वक्त की नमाज अदा करते है इसी तरह इनकी श्रदा काशी विश्वनाथ जी और बालाजी मंदिर के प्रति भी है वे जब भी काशी से बाहर रहते है I
(ख) बिसिमल्ला खा एक सच्चे इसान है वे धर्मो से अधिक मानवता आपसी प्रेम तथा भाईचारे को महत्व देते है वे हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते है I भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमे लेश मात्र भी घमड नही है I
1. बिसिम्ल्ला खा कुलसुम की कचोडी तलने की कला में भी संगीत का आरोह – अवरोह देखा करते है I
2. बचपन में वे बालाजी मदिर पर रोज शहनाई बजाते है इससे शहनाई बजाने की उनकी कला दिन प्रतिदिन निखरने लगी थी
3. बालाजी मंदिर तक जाने का रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है I