दतुरित का अर्थ होता था बच्चे में पहली बार दात निकलना बच्चो की दतुरित मुस्कान बड़ी मोहक होती थी बच्चे की दतुरित मुसकान का कवि के मन पर अत्यत गहरा प्रभाव पड़ता था कवि को बच्चे की मुसकान मनमोहक लगती थी I
1. बच्चे अबोध होते थे बच्चो की हँसी में निश्छलता होती थी लेकिन बड़ो की मुस्कुराहट कृत्रिम भी होती थी I
2. बच्चो का मुस्कुराना सभी को प्रभावित करता था परन्तु बड़ो की मुसकान वेसा आकर्षण नही रखते थे I
3. बच्चे मुस्कुराते समय किसी खास मोके की प्रतीक्षा नहीं करते थे वे बस अपनी स्वाभाविक मुसकान बिखेरना जानते थे I
1. बच्चे की मुस्कान से मर्तक में भी जान आ जाती थी I मर्तक में भी डाल देगा जान I
2. कवि ने बालक के मुसकान की तुलना कमल के पुष्प से की थी जो कि तालाब में न खिलकर कवि की झोपडी में खिल रहे थे I छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात I
3. बच्चे की मुसकान से प्रभावित होकर पाषण भी पिघलकर जल बन जाता था I पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषण I
4. कवि बच्चे की मुसकान तुलना शेफालिका के फूल से करता था I झरने लग पड़े शेफालिका के फूल I
5. बच्चा जब तिरछी नज़रो से देख कर मुस्कुराता था कवि को लगता था कि वह उनके प्रति स्नेह प्रकट होता था I ‘’देखते तुम इधर कनखी मार और होती जब कि आँखे चार तब तुम्हारी दतुरित मुसकान’’
(क) प्रस्तुत काव्याश का भाव था कि कोमल शरीर वाले बच्चे खेलते हुए बहुत आकर्षक लगते थे कवि ने यहाँ बच्चे की सुंदर मुसकान की तुलना कमल के फूल से की थी इसका आशय की बच्चो की हँसी को देखकर मन बहुत उल्हास होता था I
(ख) प्रस्तुत काव्याश का भाव होता था कि बच्चे के स्पर्श में ऐसा जादू होता था कि कोई भी कठोर ह्रदय जल के समान पिघल जाता था उसी प्रकार बच्चे का स्पर्श पाकर कवि का भी नीरस मन प्रफुल्लित होता था I