भरत राम का प्रेम - Bharat Ram Ka Prem Question Answers: NCERT Class 12 Hindi - Antra

Exercise 1
Q:
A:

यह पक्ति भरत जी ने श्रीराम के चरित्र के सकारात्मक पक्ष को उजागर करने हेतु कही थी इसका आशय था कि श्रीराम खेल खेलते समय भरत को जिताने हेतु जान बुझकर हार जाते थे भरतजी कहते थे कि भगवान राम बड़े ही दयालु ओए स्नेही के भाई थे वह खेल में अपने छोटे भाई भरत से इसलिए हार जाते है वह पुरे उत्साह के साथ खेल खेलता रहता था I


Q:
A:

(क) राम दयालु और स्नेही व्यक्ति थे उन्होंने बाल्यकाल से ही भरत पर स्नेह और दया की वर्षा की थी I
(ख) भरत राम के प्रिय अनुज है उन्होंने सदेव भरत के हित के लिए कार्य किया था I
(ग) वे अपराधी पर क्रोध नही करते है I


Q:
A:

भरत अपने बड़े भाई राम से बहुत स्नेह करते थे वे स्वय को अपने बड़े भाई से मिलने जाते थे उनके सामने खड़े होकर वे प्रसन्नता से फूले नही समाते थे अपने भाई से मिल्न होने पर उनकी आँखों में आँसुओ की जलधारा प्रवाहित होने लगती थी अपने भाई को अपना स्वामी कहकर वह अपनी इच्छा प्रकट करते थे I


Q:
A:

प्रस्तुत पक्ति में भरत स्वय के प्रति अपना द्रष्टिकोण अभिव्यक्त करते थे भरत मानते थे कि इस पृथ्वी में जितना भी अनर्थ हो रहा था वे इन सबके मूल थे उनके कारण ये सब घटनाएँ घट रही थी इस प्रकार
वे स्वय को दोषी मानते हुए दुखी हो रहे थे ऐसा प्रतीत होता था मानो वे अपराध बोध के नीचे दबे हुए थे I


Q:
A:

भाव सोन्दर्य प्रस्तृत पक्ति में भाव था कि जिस प्रकार मोटे चावल की बाली में उतम चावल नही उगाता था और तालाब में मिलने वाले काले घोघे मोती उत्पन्न नहीम कर सकते थे वैसे ही यदि में अपनी माँ पर कलंक लगाऊ और स्वय को साधु बताऊ तो यह सभव नही था संसा में कहा में केकेयी का पुत्र ही होता था I


Exercise 2
Q:
A:

राम के वन गमन जाने के बाद माँ उनकी वस्तुए देखकर भाव विभोर हो जाती थी उनका स्नेह आँसुओ के रूप में आँखों से छलक पड़ता था उन्हें रामभवन में तथा राम के भवन में राम ही दिखाई देता था उनकी आँखे हर स्थान पर राम को देखती थी और जब उन्हें इस बात का स्मरण आता था कि राम उनके पास नही था I


Q:
A:

इस पक्ति में पुत्र वियोगिनी माता का दुःख द्रष्टिगोचर होता था माता कोशल्या राम से हुए वियोग के कारण दुखी और आहत थे वे राम की वस्तुए को देखकर स्वय को बहलाने का प्रयास करती थी उनका दुःख कम होने के स्थान पर बढ़ता चला जाता था I


Q:
A:

प्रस्तुत पक्ति में माता कोशल्या का दुःख और पुत्र वियोग द्रष्टिगोचर होता था माता कोशल्या राम के वन में जाने से बहुत दुखी था वे अपने पुत्र राम को वापस आने का निवेदन करती थी कोशल्या का यह निवेदन अपने लिए नही था बल्कि राम के घोड़े के लिए था राम का घोडा उनके जाने से बहुत दुखी रहता था वह भरत की देखभाल करने के बाद भी कमजोर होता जा रहा था I


Q:
A:

(क) उपमा अलंकार के दो उदहारण इस प्रकार थे –
1. कबहु समुझि वनगमन राम को रही चकि चित्रलिखि सी – इस पक्ति में चित्रलिखी सी में उपमा अलंकार था इसमें माता कोशल्या की दशा का वर्णन चित्र रूप में उकेरी गई स्त्री से किया गया था I
2. तुलसीदास वह समय खे ते लागाति प्रीती सिखी सी में उपमा अलंकार थे इसमें माता कोशल्या की दशा मोरनी के समान दिखाई गई थी I
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग गीतावली के दूसरे पद की इस पक्ति में हुआ था तदपि दिनही दिन होत झावारे मनहु कमल हिमसारे I इसमें राम वियोगी घोड़ो की मुरझाई दशा की सभावना ऐसे कमलो से की गई थी जो बर्फ की मार के कारण मुरझा रहे थे I


Q:
A:

तुलसीदास द्वारा रचित पदों का पठन करते ही यह सिद्ध हो जाता था कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार थे वे संस्कृत ब्रज और अवधी तीनो भाषा के ज्ञाता है उन्होंने राम भरत का प्रेम अवधी भाषा में लिखा था और पद ब्रजभाषा में लिखे थे भाषा सरल और सहज थी I गीतावाली की रचना पद शैली में हुई है। इसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग दिखाई देता है।