इस कविता में दीप को अकेला बताया गया था हर मनुष्य भी संसार में अकेला आता था पक्ति का अर्थ समाज से लिया जाता था पक्ति में दीप को लाकर रख देना का तात्पर्य था कि उसे समाज का एक भाग बना देना था जो स्नेह के कारण जीवित रहता था दीप संसार को प्रकाशित करता था उसकी लो झुकती नही थी जो उसके गर्व का सूचक था I
प्रस्तुत कविता में दीप मनुष्य का प्रतीक स्वरूप था इसके विधमान पक्ति शब्द समाज का प्रतीक स्वरूप था दीप को पक्ति में रखने का तात्पर्य समाज के साथ जोड़ना था इसे ही व्यष्टि का समिष्ट में विलय कहा गया था समाज में रहकर ही मनुष्य अपना तथा समाज का कल्याण करता था इस तरह समाज और मनुष्य कल्याण होता था I
गीत तभी सार्थक था जब वह गायन से जुदा हुआ था और मोती तभी सार्थक था जब गोताखोर उसे बाहर निकल लाए थे गीत को जब तक गाया नही जाता था तब तक उसकी सार्थकता निरर्थक थी I ऐसे ही मोती को यदि कोई गोताखोर समुद्र की गहराई से निकालकर बाहर नही लाया जा सकता था उसे कोई नही पहचान सकता है समुद्र की गोद में कितने मोती विधमान थे वे बाहर नही लाये जाते थे I
जब व्यष्टि का स्म्रष्टि में विसजर्न होता था तब उसकी उपयोगिता बढ़ जाती थी प्रत्येक व्यक्ति सभी गुणों से युक्त था लेकिन समाज में उसका विलय नही था वह अकेला होता था अकेला वह अपने गुणों का लाभ न स्वय उठा पाता था जब वह समाज के साथ जुड़ जाता था तब उसके गुणों से वह समाज का कल्याण करता था I
कवि के अनुसार मधु अथार्त शहद की विशेषता होती थी कि इसे बनने में एक लबा समय लगता था समय इसे स्वय धीरे धीरे टोकरे में एकत्र करता था I गोरस हमें जीवन के रूप में विधमान कामधेनु गाय से प्राप्त होता था यह अमृत के समान ढूध था इसका पान देवो के पुत्र करते थे I अंकुर की अपनी विशेषता थी यह पृथ्वी की कठोर धरती को भी अपने कोमल पतो से भेदकर बाहर निकल जाता था सूर्य को देखने से यह डरता नही था I
(क) यह प्रकत स्वयभू और ब्रह्मा\ सज्ञाए अंकुर को दी गई थी अंकुर धरती से बाहर आने के लिए स्वय ही प्रयास करता था वह धरती का सीना चीरकर स्वय बाहर आ जाता था सूर्य उसे देखता था इस तरह कवि के अनुसार कवि भी गीतों का निर्माण स्वय करता था I
(ख) दीप सदेव आग को धारण किये रहता था इस कारण से वह उसके दुःख को बहुत अच्छी तरह से जानता था इस सबके बाद भी वह दयाभाव से युक्त होकर स्वय जलता था I
(ग) कविता में दीप को कवि ने व्यक्ति के रूप में चित्रित किया था व्यक्ति हमेशा जिज्ञासु प्रवति का रहता था इसी कारण वह ज्ञानवान और श्रद्धा से भरा हुआ था I
प्रस्तुत कविता में कवि ने दीपक की विशेषता बताई थी वह अकेला जलता था इसके बाद भी वह स्नेह से युक्त था उसमे गर्व विधमान थे उसका व्यक्तित्व इतना विशाल था कि अकेले में भी अपने को सार्थकता प्रदान कर रहा था वह नही चाहता कि कोई आत्मत्याग के लिए उस पर दबाव् डाले थे I
सागर से कवि का आशय समाज से थे तथा बूंद का आशय एक मनुष्य से थी अनगिनत बूंदों के कारण सागर का निर्माण होता था यहाँ सागर समाज थे और बूंद एक मनुष्य थे मनुष्य इस समाज में ढ़क्स्र अस्तित्व पाता था और समाज उसे अपनी देख रेख में एक सभ्य मनुष्य बनाता था I
पानी की बूंद समुद्र से उपर छलांग मारती थी वह श्रणभर के लिए समुद्र से अलग हो जाती थी उस समय उस पर अस्त होते थे सूर्य की किरणे पडती थी उसके कारण वह सोने के रंग में श्रणभर के लिए चमकती रहती थी I
इस संसार में हर वस्तु नश्र्वर था तात्पर्य कि हर वस्तु को एक दिन समाप्त हो जाना था इस के डर से मनुष्य भयभीत रहता था मगर जब बूंद सागर से श्रणभर के लिए अलग होती थी तो उसे नष्ट होने का डर समाप्त हो जाता था यह वह श्रण होता था जब वह स्वय के जीवन को या अस्तित्व को सार्थक कर देती थी मधुर मिलने से प्राप्त प्रकाश इस कलक को धो डालता था कि मनुष्य जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाता था I
यह कविता मनुष्य श्रण का महत्त्व बताती थी कवि चाहता था कि मनुष्य द्वारा स्वार्थहित से स्वय को हटाकर व्यष्टि का समष्टि में विलय कर देना था इस संसार में विधमान प्रत्येक व्यक्ति दुखी था अत हमे चाहिए कि मिलकर लोगो के दुखों को दूर करने का प्रयास करता था इसी तरह एक बूंद सागर से अलग होकर श्रण भर में सूर्य के प्रकाश से चमक उठती थी I