कवि ने अनुसार आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होने के लिए लोगो ने गलत रास्तो को अपनाया था लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी का भी गला काटने से परहेज नही करते थे देश को खोखला बनाने में ये बहुत सहयोग दे रहे थे देश का पैसा गबन कर विदेशी बैको में डाल रहे थे I
हाथ फेलाने वाला व्यक्ति स्वय को भ्रष्टाचार में लिप्त नही करता था इसी कारण उसकी ऐसी दशा हो जाती थी कि उसे दूसरो के आगे हाथ फेलाने पड़ते थे उसका परिवार दर दर की ठोकरे खाने को विवश हो जाता था यदि वह अन्य लोगो की भाति भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता था उसकी चाँदी हो जाती थी I
प्रत्येक व्यक्ति में ऐसी शक्ति विधमान होती थी कि वह समाज में क्रांति उतपन्न कर सकता था समाज के प्रति उसके कुछ कर्तव्य बनते थे समाज में जो अनेतिक घट रहा था उसका विरोध करना उसका कर्तव्य बनता था वह आवाज उठा सकता था परन्तु उठाता नही था क्योकि वह डरता था हाथ फेलाने वाला व्यक्ति ऐसा ही व्यक्ति था I
प्रस्तुत पक्तियों में कवि ऐसे तबके को सबोधित करता था जो भ्रष्टाचार तथा अनेतिकता में लिप्त था कवि कहता था कि तुम्हे मुझसे डरने या प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता नही थी क्योकि में तुम्हारा प्रतिद्दी नही था लेखक उन्हें पहले से ही आगह कर देते थे कि वह इस दोड में सम्मिलित नही था प्रस्तुत पक्ति में कवि कास विरोध तथा कुछ न कर पाने का दुःख साफ़ अभिलिक्षित होता था I
(क) इन पक्तियों का भाव यह था कि कवि 1947 के बाद के भारत में बहुत से लोगो ने अनेतिकता तथा भ्रटाचार के तरीको का सहारा लेकर अतुलनीय धन कमाया था जब उनसे कोई इस धन के विषय में बातचीत करता था उनका जवाब होता था कि उन्होंने यह धन आत्मनिर्भर तथा गतिशील होकर कमाया था I
(ख) भाव यह था कि भ्रष्ट लोगो को देखकर भी कवि कुछ नही कर पाता था इसलिए वह स्वय को लाचार मानता था परन्तु यदि प्रयास करता था शायद कुछ बदलाव हो सकता है यही कारण था कि वह स्वय को कामचोर कहने से नही हिचकिचता था ईमानदार लोगो की दशा को अनदेखा करने के कारण स्वय को धोखेबाज भी कह डालता था I
(ग) भाव यह था कि कवि के अनुसार ईमानदार लोगो के समक्ष उसका कोई व्यक्तिव नही था वह किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा और टकराव की स्थिति दूर रहना था I
(क) कवि ने मुक्तछंद में कविता की रचना की थी इसकी भाषा सरल व सहज था इसमें हाथ फेलाना मुहावरे का बहुत उतम प्रयोग किया गया था यह ईमानदार व्यक्ति की लाचारी का सूचक भी था I
(ख) कवि ने मुक्तछद में कविता की रचना की थी इसकी भाषा सरल व सहज था इसमें
प्रतीकात्मता का गुण था इसमें व्यजना का भी प्रयोग किया गया था कवि तटस्थ रहता हुआ था I
सत्य यदि पुकारने से मिल जाता था आज असत्य का बोलबाला नही होता था सत्य पुकारने से नही अपितु सत्य का आचरण करने है उसके लिए लोगो को कठिन सघर्ष से गुजरना पड़ता था जेसे धर्मराज युधिष्ठिर ने किया है उन्होंने सारा जीवन सत्य का आचरण किया था तथा सत्य को अपना धर्म समझा था यही कारण है कि वह धर्मराज कहलाये थे वे विदुर के मुख से सत्य के विषय में सुनना चाहते है परन्तु विदुर उन्हें यह बताने से भाग रहे है I विदुर जानते है कि सत्य का मार्ग बड़ा ही कठिन था वे स्वय को सतुलित रखते थे इस मार्ग में बढ़ रहे है I
सत्य स्वय में एक प्रबल शक्ति थी उसे दिखने से कोई नही रोक सकते थे परन्तु यदि परिस्थतिया इसके विरोध में आ जाते थे तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाती थी सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना सभव नही था क्योकि यह कोई वस्तु नही थी यही कारण था कि यह स्थिर नही रहता था और यही सबसे बड़े दुःख की बात भी थी I
सत्य और सकल्प में भक्त और भगवान के समान सबध था जेसे भक्त के बिना भगवान और भगवान के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नही था वेसे ही सत्य के मार्ग बढ़ते हुए यदि मनुष्य में सकल्प शक्ति की कमी थी तो सत्य तुरंत डीएम तोड़ देता था सत्य का मार्ग बहुत कठिन और सघर्ष युक्त था I
युधिष्ठिर जेसा सकल्प से तात्पर्य था सत्य के मार्ग पर अडिग होकर चलने की शक्ति थी युधिष्ठिर ने अपने जीवन में सत्य का मार्ग चुना है इसके लिए उन्होंने विदुर तक को अपने सम्मुख झुकने पर विवश कर दिया है वे उम्रभर इस मार्ग पर ही नही चले थे बल्कि उन्होंने इसे अपने आचरण में आत्मसात किया था I
कविता के अनुसार सत्य हमारे अतकरण में विधमान होता था उसे खोजने के लिए हमे अपने भीतर झाकना आवश्यक था सत्य के प्रति हमारे मन में सशय उत्पन्न हो सकता था परन्तु यह सशय हमारे भीतर प्याप्त सत्य को धूमिल नही कर पाता था सत्य का स्वभाव स्थिर नही था उसे हमारे द्वारा स्थिरता प्रदान की जाती थी
कविता में हम शब्द ऐसे लोगो का सूचक था जो सारी उम्र सत्य की खोज के लिए मारे मारे फिरते थे वे सत्य को पहचानना तथा जानना चाहते थे उनकी मुख्य चिंता यह थी कि वह सत्य का स्थिर रूप रंग और पहचान नही खोज पा रहे थे यदि वे इन्हें खोज लेते थे वह सत्य को स्थायित्व प्रदान कर सकता था I
आज का युग अधर्म और अनेतिकता के ताने बाने में उलझकर रह गया था लोग पूर्णता सत्य का आचरण नही करते थे असत्य का साम्रज्य चारो और फेल रहा था कवि असत्य की विजय देखकर दुखी था यह मानवता की हत्या थी यही कविता का मर्म था कवि के अनुसार मानवता की भलाई इसी में ही कि वह सत्य के मार्ग पर चलते थे I