(क) प्रेम का धागा एक बार टूटने के बाद उसे दुबारा जोड़ा जाता था उसमे गाठ पड जाती थी वह पहले की भाती नही जुड़ पाती थी I
(ख) हमे अपना दुःख दूसरो पर इसलिए प्रकट नही करना चाहिए था क्योकि इससे कोई लाभ नही था अपने मन की व्यथा दूसरो से कहने पर वे उसका मजाक उड़ाते थे I
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य इसलिए कहा था क्योकि छोटा होने के बावजूद भी वो लोगो और जीव जंतुओ की प्यास को तप्त करता था I
(घ) कवि की मान्यता थी कि ईश्वर एक था उसकी ही साधना करनी थी वह मूल था उसे ही सीचना था जेसे जड़ को सीचने से फल फूल मिल जाते थे I
(ड) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी इसलिए नही कर पाता क्योकि उसके पास अपना कोई सामर्थ्य नही होता था कोई भी उसी की मदद करता था I
(च) अपने पिता के वचन को निभाने के लिए अवध नरेश को चित्रकूट जाना पडा था I
(छ) कुंडली मारने की कला में सिद्ध कारण उपर चढ़ जाता था I
(ज) मोती का अर्थ था चमक या आब इसके बिना मोती का कोई मूल्य नही था मानुष के पानी का अर्थ मान सम्मान था मनुष्य का पानी अथार्त समान समाप्त हो जाता था उसका व्यर्थ था I
(क) कवि इस पक्ति द्वारा बता रहा था कि प्रेम का धागा एक बार टूट जाने पर फिर से जुड़ना कठिन होता था अगर जुड़ भी जाए पहले जेसा प्रेम नही रह जाता था I
(ख) कवि का कहना था कि अपने दुखों को किसी को बताना नही था दूसरे लोग सहायता नही करते थे उसका मजाक भी उड़ाये थे I
(ग) इन पक्तियों द्वारा कवि एक ईश्वर की आराधना पर जोर देते थे इसके समर्थन में कवि पेड़ की जड का उदाहरण देते थे कि जड़ को सीचने से पूरे पेड़ पर पर्याप्त प्रभाव हो जाता था I
(घ) दोहा एक ऐसा छद था जिसमे अक्षर कम होते थे पर उनमे बहुत गहरा अर्थ छिपा होता था I
(ड) जिस तरह संगीत की मोहनी तान पर रीझकर हिरण अपने प्राण तक त्याग देता था इसी प्रकार मनुष्य धन कला पर मुग्ध होकर धन अर्जित करने को अपना उद्धेश्य बना लेता था I
(च) हरेक छोटी वस्तु का अपना अलग महत्व होता था कपड़ा सिलने का कार्य तलवार नही कर सकता था वहा सुई ही काम आती थी इसलिए छोटी वस्तु की उपेक्षा नही करनी थी I
(घ) जीवन में पानी के बिना सब कुछ वेकार थे इसे बनाकर रहना था जेसे चमक या आब के बिना मोती बेकार थे पानी अथार्त सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन बेकार था और बिना पानी के आटा या चूना को गुथा नही जा सकता था I
(क) – ‘’जा पर बिपदा पडत है , सो आवत यह देस I ‘’
(ख) – ‘’ बिगरी बात बने नही , लाख करो किन कोय I ‘’
(ग) – ‘’ रहिमन पानी राखिए , बिनु पानी सब सून I ‘’