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Welcome to the Chapter 2 - dopahar ka bhojan, Class 11 Hindi - Antra NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 2 - dopahar ka bhojan. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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सिद्धेश्र्वरी ने मझले बेटे मोहन के बारे में झूठ इसलिए बोला क्योकि वह जानती है कि यदि उसने रामचंद्र को मोहन की आदतों के बारे में बताया था कि भाइयो के बीच लड़ाई हो जाती थी और वह ऐसा नही चाहती है सिद्धेश्र्व्ररी का बड़ा बेटा घर में रोटी लाने वाला अकेला ही है और मोहन पढाई की जगह दोस्तों के साथ घूमता फिरता है I
सिद्धेश्र्वरी ने जो भी झूठ बोले वह अपने परिवार के मधु एकता प्रेम एकता प्रेम और शांति स्थापित करने के लिए बोले है उसके झूठो में किसी प्रकार का स्वार्थ विधमान नही है उसके झूठ एक भाई क दूसरे भाई के प्रति बच्चो का पिता के प्रति तथा पिता की बच्चो के प्रति आपसी समझ और प्रेम बडाने के लिए ब्प्ले गए है इस परिवार को मुसीबत के समय एक बनाए रखने का प्रयास करती थी I
कहानी का सबसे जीवत पात्र सिद्धेश्र्वरी का था क्योकि वह मोहन की आदतों के बारे में जानकार भी अपने बड़े बेटे से इस डर से कुछ नही कहती थी कि कही भाइयो में लड़ाई ना हो जाए वह घर में भोजन नही रहते हुए भी किसी से कुछ नही बोलती थी कि भोजन के लिए परिवार के सभी सदस्य आपस में भिड ना जाये I
1. रामचंद्र को खाने में दो रोटी देती थी और यह जानते हुए भी कि घर में खाने को कम था वह रामचंद्र से बार बार और रोटी लेने के लिए पूछती थी I
2. मोहन बदमाश था परन्तु उस भी यह ज्ञात था कि घर में खाने को नही था और माँ दिखावा कर रही थी इसलिए वह भी रोटी लेने से इंकार कर देता था I
3. चारपाई पर बीमार बच्चा बुखा है और हो रहा है और सिद्धेश्र्वरी उसे भी एक रोटी दे देती थी और सिद्धेश्र्वरी के लिए कुछ नही बचता वह बस पानी ही पीकर अपना पेट भर लेता था I
सिद्धेश्र्वरी अपने परिवारजनों में प्रेम बढाने के लिए कोई भी झूठ बोल सकता था क्योकि उसे मालूम था कि घर में खाने के लिए वेसे भी कुछ नही थी और ऐसे समय में यदि परिवार में लड़ाई भी शुरू हो जाती थी तो उसका परिवार बिखर जाता था सिद्धेश्र्वरी बीएस अपने परिवार को प्रेम से रहता देखना चाहती थी I
इस कहानी में अमरकांत में बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया था उन्होंने ऐसा इसलिए किया था ताकि आम लोग इस कहानी को पढ़ सकता था उन्होंने किसी भी तरह का दिखावा नही किया था अभी बहुत सी थी इस बात पर मुशी जी अपराधी के समान अपनी पत्नी को देखते थे तथा रसोई की और कनकी से देखने के बाद किसी घुटे उस्ताद की भाती बोले रोटी रहने दो पेट काफी भर चूका था I
रामचंद्र मोहन और मुशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए बहाने करते थे क्योकि उन्हें पता था कि घर में खाना नही था उन सभी को अपने पेट को रोककर यह झूठ बोलना पड़ रहा था कि वह भूखे नही थे क्युकी वह जानते था कि वह इतने गरीब था कि उनके पास भोजन लाने के पेसे नही थे I
इस कहानी में मुशीजी और सिद्धेश्र्वरी के बीच जो भी बाते होती थी वे एक दूसरे से सबन्धित प्रतीत नही होती थी जब मुशी जी सिद्धेश्र्वरी से किसी अन्य विषय पर बात कर रहे होते थे सिद्धेश्र्वरी अचानक मुशी जी से कभी बारिश के बारे में कभी फूफा जी के बारे में कभी गंगाशरण बाबू की लडकी के बारे में बाते बदल कर गभीर माहोल को हल्का करने की कोशिश करती थी वह जानती थी कि मुशी जी के पास उसके किसी भी सवाल को कोई जवाब नही था I
दोपहर का भोजन गरीबी का एक मनोवेज्ञानिक उद्धरण कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया था इस कहानी में जो भी नायिका होती थी ऐसा करती जेसे सिद्धेश्र्वरी ने ऐसा था I
रसोई में जितनी भी साम्रगी हो गृहणी को इतने में ही सभी सदस्यों को ध्यान में रखकर पूरी जगह का समावेश किया जाता था अगर पर्याप्त सामग्री थी तब चिंता की बात बिल्कुल भी नही होती थी
लेकिन सामग्री भूत कम हो और सदस्यों को पूरे न पड़े थे तो गृहणी की परीक्षा हो जाती थी I
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