jag-tujhko-door-jana-haiWHERE cd.courseId=2 AND cd.subId=33 AND chapterSlug='jag-tujhko-door-jana-hai' and status=1SELECT ex_no,page_number,question,question_no,id,chapter,solution FROM question_mgmt as q WHERE courseId='2' AND subId='33' AND chapterId='1148' AND ex_no!=0 AND status=1 ORDER BY ex_no,CAST(question_no AS UNSIGNED)

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Chapter 15 : Jag Tujhko Door Jana Hai


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Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

जाग तुझको दूर जाना कविता में कवियत्री का मानव को उत्साहित करने का तथ्य यह था कि वह विपरीत परिस्थतियो में भी आगे बढ़े और उन्होंने इसे निम्नलिखित तरीके से प्रस्तुत किया था –
1. कवयित्री कह रही थी कि हिमालय के ह्रदय में कम्पन था यह भूकप पैदा कर सकता था लेकिन आपको आगे बढ़ते रहना था इस कपंन से डरना नही था I

2. जब प्रलय आता है तो ऐसे वक्त व्यक्ति घबरा जाता था ऐसे में घबराना नही था आगे बढ़ते रहना था I

3. अगर चारो तरफ घना अँधेरा छाया था कुछ दिख नही रहा था तब बि आपको आगे बढ़ते रहना था I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )

Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

महादेवी वर्मा ने एक ऐसी कविता की रचना की जिसका तात्पर्य देष के लोगो को स्वतंत्रता के प्रति जागरूक बनाना है देश गुलामी के जजीरो में जकड़ा है लोग स्वतत्रता चाहते है लेकिन उस लड़ाई में सीधे तोर पर लड़ने से डरते है वे इसमें भाग लेने से डरते है इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि वह स्वार्थी और आलसी है उनके देशभक्ति की भावना जगाने के लिए जागरण गीतों की रचना की गई थी I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

इसके उत्तर आप स्वय और अध्यापक की सलाह से दे I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

महादेवी वर्मा ने इस कविता में स्वतत्रता के रास्ते में आने वाली कठिनाइयो का वर्णन किया था और भारतीयों के भीतर इन कठिनाइयों से निपटने के लिए गुणों का विस्तार करने की मांग की थी वह मनुष्य को दंड संकल्पित हो जाता था वह अपने आलस्य को दूर करने के लिए प्रेरित होता था कवयित्री इसमें कड़ी मेहनत की गुणवता को विकसित करती थी वह उसे विषम परिस्थति में निडर होकर बढने के लिए कहती थी इस तरह वह उसमे निडरता  का गुण समाहित करती थी साथ ही वह उसे अपने लगाव को छोड़ने के लिए कहती थी I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

आँसू मनुष्य की पवित्रता के प्रतीक होते थे बहते आसुओ में कोई छल नही होता था यह शुद्ध भावना और शुद्ध आत्मा में लगी ठोस के कारण छलकते थे इन आंसुओ का कोई न कोई आधार होता था वह निराधार नही होते थे I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

(1) दीपक के समान जलने को कहा था I                                                                            (2) फूल के समान खिलने को कहा था I
(3) कठोर स्वभाव के अंदर भी करुणा की भावना को रखना था I
(4) जीवन में सत्य की झलक को दिखाना था I
(5) हर व्यक्ति के अंदर व्याप्त सच्चाई को जानना था I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

इसका उत्तर आप स्वय और अध्यापक से सलाह करके दे I


Exercise 1 ( Page No. : 155 )
Q:
A:

इसका उत्तर आप स्वय और अध्यापक से सलाह करके दे I