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Welcome to the Chapter 10 - Kabeer, Class 11 Hindi - Antra NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 10 - Kabeer. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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अरे इन दोहून राह न पाई में कबीर हिन्दू और मुसलमान धर्म व्यग करते थे वे दोनों में से किसी भी धर्म के बारे में कहते थे हिन्दू धर्म को मानने वाले खुद को बहुत श्रेष्ठ समझते थे और किसी नीची जाति वाले को अपने घड़े का पानी तक नही पिन नही देते थे वे वैश्या को अपशगुन मानते थे
उसका सम्मान नही करते थे और मदिरा पान करके उसके चरणों में लेटे रहते थे I
कबीर जहां हिन्दू मुस्लिम के बारे में बात करते थे वहा हमे एक समाज सुधारक के रूप में नजर आते थे वे सिर्फ एक ही ईश्वर को मानते है वे है परमात्मा वे कर्मकांड मूर्तिपूजा , रोजा , ईद और मन्दिर के घोर विरोधी है उनका कहना है कि इससे मनुष्य मोक्ष कि प्राप्ति नही कर सकता था
कबीर यह कहना चाहते थे कि हिन्दू जो हर विषय में खुद को वशिष्ट समझता था वह असल में अपनी से नीची जाति को कभी आगे नही बढने देना चाहता था वह उसे कभी अपने घड़े का पानी भी नही पीला सकता था तो वह किस प्रकार महान था दूसरी तरफ वे तुर्की अथार्त मुसलमानों को कहते थे कि वो अली को मानते थे और दूसरे जानवरों की हत्या भी करते थे I
कबीरदास यह कहना चाहते थे की यह दुनिया अन्धविश्वासो में डूब गयी थी दुनिया में लोगो को कोन सी राह चुननी थी या कोन सी राह उनका भविष्य स्वार देता था वर्तमान काल में लोग घर्म और जाति में फस कर रह गए थे जेसे हिन्दू, मुस्लिम , सिख, ईसाई इत्यादि थे I
इस पक्ति के माध्यम से कबीर जी यह कहना चाहते थे की मेरे इश्वर मेरे प्रभु मुझसे मिलने आये थे वह अब इस धरती पर रहना नही चाहते थे वे अपने परमात्मा के पास जाना चाहते थे इसलिए वे परमातनमा की एक झलक देखने के लिए तड़प रहे थे I इसलिए वे परमातनमा की एक झलक देखने के लिए तडप रहे थे I
अन्न न भावे नीद ना आवे से कवि का येह आशय था की उससे अपने प्रियतम के बिना नींद नही आती भूख प्यास नही कागटी यहाँ कवि ने खुद को प्रिय और परमात्मा को अपनी पत्नी के रूप मजाक माना लिए वे उसी पीड़ा को सहन कर रहे थे I
यह कवि यह कहना चाहता था की जिस प्रकार किसी कामिन अथार्त स्त्री को अपना बालम प्रिय होता था वह कभी उससे दूर नही होना था जिस प्रकार कोई प्यासा पानी की निरतर तलाश में रहता था उसी प्रकार कवि भी अपने प्रियतम से मिलने के लिए तड़प रहा था वह विरह की ज्वाला सहन कर रहा था I
कबीर निर्गुण संत परम्परा से कवि थे वे मूर्तिपूजा कर्मकांड और अध्विश्वसो पर विश्वास नही करते थे इस कथन के माध्यम से वे अपनी आत्मा और परमात्मा के मिलन की बात करते थे वह सांसारिक नही बल्कि आध्यात्मिक प्रेम की बात करते थे I
कबीरदास एक व्यगकर थे पहले पद में वे हिन्दू और मुसलमान के कर्मकांड पर व्यग करते थे उन्हें दोषी ठहराते थे उन्होंने ऐसे विषयों पर कटाक्ष किये थे जिसकी वजह से समाज से झगड़े होते थे वे समाज को सही रास्ता दिखाना चाहते है इस तरह वह एक सामाजिक सुधार के रूप में सामने आते थे इस पद में सरल भाषा थी ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया था I
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