एक दिन जब धनराम तेरह का पहाडा नहीं सुना पाया था तब मास्टर त्रिलोक सिंह ने अपनी जवान की चाबुक का उपयोग करते हुए कहा कि उसके दिमाग में लोहा भरा होता है वहां विदया का ताप लगाने का सामर्थ्य नहीं है I
बचपन में ही नीची जाति के धनराम के मन में यह बात बेठा दी गई है कि उच्ची जाति वाले उनके प्रतिद्द्वी नहीं था दुसरे कक्षा में मोहन सबसे बुदिमान बालक पुरे विद्यालय का मोनिटर था I
धनराम को मोहन के हथोडा चलाने और लोहे की छड को सटीक गोलाई देने की बात पर आश्चर्य तो होता था धनराम उसकी कार्य कुशलता को देखकर इतना आश्चर्य चकित नहीं होता था I
मोहन के लाख्ननऊ आने के बाद के समय को नया अध्याय इसलिए कहा जाता था क्योकि गाव के परिवेश से निकलकर उसे शहरी परिवेश का ज्ञान था शहर में आकर उसकी आगे की पढाई करने से निकलकर उसे शहरी परिवेश का ज्ञान था I शहर में आकर उसकी आगे की पढाई करने का अधूरा मोका मिला यदि वह गाव में रहता था I
धनराम द्वारा तेरह का पहाडा न याद कर पाने पर मास्टर त्रिलोक सिंह द्वारा कहे गए व्यग वचन कि उसके दिमाग में टो लोहा ही भरा था लेखक ने जबान की चाबुक कहा था लेखक के कहने का तात्पर्य यह था कि शारीरिक चोट इतनी तकलीफदेह नहीं होती थी I
1. उपयुक्त वाक्य पंडित वशीधर ने अपने बिरादरी के युवक रमेश से कहे I
2. जब वशीधर अपने बेटे की आगे की पढाई के लिए चितित होते है उस समय रमेश ने उनसे सहानभूति प्रकट की थी और अपने बेटे को आगे की पढाई के लिए लखनऊ ले जाने की बात बोली थी I
3. वशीधर ने वाक्य रमेश के प्रति कृतज्ञता के भाव के आशय से कहते है वशीधर के कहने का यह आशय है कि जाति बिरादरी का यह लाभ था I 4. इस कहानी से वशीधर का आशय बिलकुल भी सिद्र नहीं था वाशीधर ने अपने बेटे को जिस आशा से रमेश के साथ भेजा है वह पूरा न हो सका था I
2. 1. उपयुक्त वाक्य मोहन के लिए कहा था I
2. जब मोहन ने भट्टी में बैठकर लोहे की मोती छढ़ को गोलाई में ढालकर सुड़ोल बना था है तब उसकी आँखों में सृजक की चमक है I
3. यह मोहन कि वह जाति को व्यवसाय से नहीं जोड़ता था अपने मित्र की मदद कर वह उदारता का भी परिचय देता था I
गाव और शहर दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन सघर्ष में ज्यादा कुछ फर्क नहीं था गाव में उससे गरीबी साधनहीनता और प्राकतिक बाधाओ के साथ सघर्ष करना पड़ता है शहर में उसे दिन भर नोकरो की तरह काम करना पड़ता था I
मास्टर त्रिलोक सिंह एक परपरागत शिक्षक थे वे एक अच्छे अध्यापक की तरह बच्चो को पढ़ाते थे किसी सहयोग के बिना अकेले ही पूरी पाठशाला को चलते थे वे अनुशासन प्रिय शिक्षक और दड देने में विश्वास रखते थे I
गलत लोहा कहानी का अत हमें केवल सोचने के लिए मजबूर का छोड़ देता है कहानी के अत से यह स्पष्ट नहीं होता था कि मोहन ने केवल सर्जन का सुख लुटा या पुनः अपनी खेती के व्यवसाय की और मुड़ गया था उसने धनीराम का पेशा अपना लिया था I