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Welcome to the Chapter 21 - Kutaj, Class 12 Hindi - Antra NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 21 - Kutaj. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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कुटज ऐसा साथी था जो कठिन दिनों में साथ रहा था कालिदास ने अपनी रचना में जब रामगिरी पर्वत पर यश्र को बादल से अनुरोध करने भेजा है वहां कुटज का पेड़ विधमान है उस समय में कुटज का पेड़ ही विधमान है उस समय में कुटज के फूल ही उसके काम आये है I
(क) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से लिया गया था इसमें लेखक कुटज की विशेषता बताते थे दूसरी और वह ऐसे लोगो की और सकेत करता था जो स्वभाव से बेशर्म होते थे I व्याख्या – इन पक्तियों के माध्यम से लेखक कुटज और उन व्यक्तियों के बारे में बात करते थे जो निराधार प्रतीत होते थे लेखक कहते थे कि कुटज अपने सिर के साथ एक ऐसे वातावरण में खड़ा था जहां अच्छे से अच्छे लोग एक वस्तुए आश्र्चर्य हो जाती थी कुटज पहाड़ो के चट्टानों पर पाया जाता था इसके अलावा वे मोजूदा जल स्त्रोतों से अपने लिए पानी उपलब्ध करता था I
(ख) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से लिया गया था इस निबध में लेखक ने कुटज वृक्ष की विशेषता बताई थी I व्याख्या – इन पक्तियों में लेखक ने नाम के विशेषता का वर्णन किया था हर किसी के जीवन में नाम का बहुत अधिक महत्त्व था एक व्यक्ति की पहचान उसके नाम से ही थी भले ही कोई हमे किसी व्यक्ति के रंग और आकार के बारे में कितना ही क्यों न बता देता परंतु जब तक हमे उस व्यक्ति का नाम नही पता चलेगा हम अच्छे से नही समझ पा सकते थे नाम ही इसान की पहचान से होती थी I
(ग) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से ली गई थी इस निबध में लेखक ने कुटज की विशेषताओं के बारे में बताया था I व्याख्या- प्रस्तुत पक्तियों में लेखक ने कुटज के सुंदरता के बारे में लिखा था लेखक का कहना था कि कुटज का वृक्ष देखने में बहुत सुदर था यदि हम वातावरण को देखेगे चारो और भयानक गर्मी थी ऐसा लगेगा कि मानो यमराज साँस ले रहे थे कुटज का वृक्ष भी बहुत गर्म थे लेकिन यह झुलसा नही था यह वृक्ष आच्छादित थे इसके साथ ही यह फलदार भी थे I
(घ) प्रसग प्रस्तुत पक्तिया हजारी प्रसाद दिवेदी द्वारा रचित निबध कुटज से ली गई थी इस निबध में लेखक ने कुटज की विशेषताओं के बारे में बताया था I व्याख्या – इन पक्तियों में लेखक ने कुटज की सुन्दरता के बारे में बताया था लेखक ने यह भी बताया था कि हमे केसी भी कठिन परिस्थतियो में हार नही मानना था बल्कि उस परिस्थति का डटकर सामना करना था हमे हर परिस्थति में धेर्य वान होना था हमे अपनी मेहनत और ताकत से हर कार्य को पूरा करना था हमे अपनी मेहनत और ताकत से हर कार्य को पूरा करना था I
नाम का जीवन में बहुत महत्त्व था नाम था जो मनुष्य की पहचान था मनुष्य को उसके चेहरे मोहरे से पहचान नही पाते थे मनुष्य को उसके चेहरे मोहरे से पहचान भी लिया जाए लेकिन जब तक नाम याद न आए मनुष्य की पहचान अधूरी लगती थी समाज में लोग हमे इसी नाम से जानते थे I
हजारी प्रसाद जी ने कुटज पाठ में इस विषय पर प्रकाश डाला था उनके अनुसार कुट शब्द के दो अर्थ होते थे घर या घडा इस आधार पर कुटज शब्द का अर्थ उन्होंने बताया था घड़े से उत्पन्न होने वाला था यह नाम अगस्त्य मुनि का ही दूसरा नाम था कहा जाता था कि उनकी उत्पति घड़े से हुई है I
कुटज ऐसे वातावरण में जीवित खड़ा था जहां पर दूब भी पनप नही पाती थी वहां पर कुटज का खड़े रहना और उसके साथ फलना फूलना उसकी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषणा करना था वह पहाड़ो की चट्टानों के मध्य स्वय को खड़ा रखता था तथा उसमे व्याप्त जल स्त्रोतों से स्वय के लिए जल ढूढ निकालता था ऐसे एकाकी स्थानों में भी वह विजयी खड़ा था I
कुटज हम सभी को उपदेश देता था कि विकट परिस्थतियो में हिम्मत नही हरानी चाहिए हमे धीरज रखना चाहिए था यदि हम निरतर प्रयास करते थे हम इन विकट परिस्थतियो को अपने आगे झुकने के लिए विवश कर देते थे I
(क) हमे हिम्मत कभी नही हरानीचाहिए था I
(ख) विकट परिस्थतियो का सामना धीरजके साथ करना था I
(ग) अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिएप्रयास करते रहना था I (घ)स्वय पर विश्वास रखो किसी के आगेसहायता के लिए मत झुको I
(ड) सिर उठाकर जिओ था I
(च) मुसीबत से घबराओ मत I
(छ) जो मिले उसी सहर्ष स्वीकार कर लेता था I
लेखक यह प्रश्न उठाकर मानवीय कमजोरियों पर प्रहार करता था लेखक के अनुसार कुटज का वृक्ष जीता ही नही बल्कि यह सिद्ध कर देता था कि मनुष्य में यदि जीने की ललक था वह किसी भी प्रकार की परिस्थतियो से सरलतापूर्वक निकल सकता था इस प्रकार जीने में वह अपने आत्मसम्मान तथा गौरव दोनों की रक्षा करता था I
स्वार्थ हमे गलत मार्गो पर ले जाता था इस स्वार्थ के कारण ही मनुष्य ने गगनचुम्बी इमारते खड़ी की थी सागर में बड़े बड़े पुल बनाए हवा में उड़ने वाला विमान बनाया था हमारे स्वार्थो की कोई सीमा नही थी जिजीविषा के कारण ही हम जीने के लिए प्रेरित होते थे लेकिन स्वार्थ और जिजीविषा ही था जो हमे गलत मार्ग में ही ले जाते थे I
दुःख और सुख सच में मन के विकल्प था लेखक के अनुसार जिस व्यक्ति का मन उसके वश में था वह सुखी कहलाता था कारण कोई उसे उसकी इच्छा के बिना कष्ट नही दे सकता था वह अपने मन
अनुसार चलता था और जीवन जीता था दुखी वह था जो दूसरो के कहने पर चलता था या जिसका मन स्वय के वश में न होकर अन्य के वश में था I
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