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गूगे ने अपने स्वाभिमान होने का परिचय सकेतो के माध्यम से दिया था उसने अपनी बाजुओ को दिखाते हुए यह संकेत दिया था उसने हमेशा मेहनत कर के ही खाया था उसने अपने सीने पर हाथ रखकर बताया था कि उसने कभी किसी के सामने हाथ नही फेलाते थे I
कहानी के इस कथन में की मनुष्य की करुण भावना उसके भीतर के गूंगेपन की प्रतिच्छाया थी लेखक ने इसका सबध सामाजिक परिवेश के सदर्भ में किया था क्योकि मनुष्य में स्वेदना का करुण भाव होता था जो उसकी चेतना को दर्शाता था यदि मनुष्य में सवेदना का करुण भाव होता था जो उसकी चेतना को दर्शता था I
चमेली का ये कथन उसकी गूंगे के प्रति मनोभावो को दर्शाता था उसने गूंगे को अपने घर पर रहने के लिए आश्रय दिया है लेकिन वह बिना बताए घर से चला जाता था जिसपर चमेली कहती है की नाली का कीड़ा कहने से तात्पर्य था की एक बेसहारा इंसान को चाहे कितना भी सहारा देता था I
यदि चमेली का बेटा बसता गूं होता था उसके प्रति चमेली का व्यवहार बिलकुल ही अलग होता था क्योकि वह उसका अपना बेटा था उसके साथ उसके भाव प्रेम और सवेदनाए जुडी हुई होती थी वह बसता की सारे बाते समझने की कोशिश करती थी और उसे बहुत प्यार करते थे I
गूंगा चमेली को बहुत मानता है जब चमेली गूंगे की अपेक्षा अपने बेटे का पक्ष लेते थे तो गूंगे की आँखों में पानी भरा है उनमे एक शिकायत है पक्षपात के प्रति तिरस्कार है ऐसा इसलिए है क्योकि वह चाहता है की चमेली उसकी भी बात सुनती थी और उसका पक्ष लेता था I
गूंगा चमेली के घर पर रहने लग गया है उसे वहां पर अपनत्व का एहसास होता था लेकिन वह उस घर में अपने गूंगे होने के कारण दया या सहानुभूति नही चाहता था बल्कि अधिकार चाहता था जोकि एक घर में एक सदस्य को मिलता था I
गूंगे कहानी पढ़कर हमारे मन में आत्मनिर्भर स्वाभिमान और अपनत्व का भाव उत्पन्न होता था क्योकि गूंगा लड़का अपनी कमजोरी को अपनी लाचारी नही मानता था वह अप अ पेट अपनी मेहनत सेभरता था किसी से भीख नही मागता था क्योकि वह स्वाभिमानी थी और खुद अपने दम पर अपना काम करता था I