लेखक ने कविता को हमारी भारतीय परपरा का विचित्र परिणाम कहा था क्योकि जो कवि होते थे वह अपने मन के विचारो को काफी गभीरता पूर्वक व्यक्त करते थे कवियों के दो प्रमुख स्वाभाविक तत्व धूप और हवा होते थे I
सोदर्य बस एक सुंदर चोखटा होता था यह बात असत्य था ऐसा नही कहा जा सकता था क्योकि सोदर्य में किसी प्रकार का रहस्य नही होता था यह बस एक खोखले ढाचे के समान था ऐसा सोदर्य जिसमे कोई रहस्य छुपा नही होता था वह आकर्षक प्रतीत नही होता था I
व्यक्ति को पहले लेखक ने असाधारण और समान्य माना था लेखक ऐसा इसलिए मानते थे क्योकि मानव अपने एक विचार या एक कार्य के लिए अपने परिवार को छोड़ देता था यह उसकी असाधरण और असामान्यता का परिचय था मनुष्य अपने भीतर इतना साहस रखता था कि वह क्रोध में किए गए अपने विचारो का भी समर्थन करता था दूसरा लेखक खुद को साधारण मानता था लेखक कहता था कि वह अपने दोस्तों के जेसे ही सफल नही हो सकता था I
उसकी पूरी जिंदगी भूल का एक नक्शा थे इस कथन के माध्यम से लेखक एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताता था जिससे जीवन भर कठिन परिक्षम किया था परतु उसे कभी सफलता प्राप्त नही हुई थी उस व्यक्ति ने जीवन भर छोटी छोटी सफलताओं के लिए भी कड़ी मेहनत की लेकिन उस वह भी नही मिली थी व्यक्ति हमेशा असफल होकर निराश हो गया है I
पिछले बीस वर्षो की सबसे महान घटना सयुक्त परिवार का हार्स था और यह भारत में हुई थी सयुक्त परिवार समाज के लिए आवश्यक था मनुष्यों के शिक्षा संस्कार अच्छा चरित्र आदि यह सभी उसके परिवार का हार्स होने से मनुष्य सामाजिक तोर पर विकसित नही हो पा रही थी I
लेखक जो कह रहे थे वह बिल्कुल सत्य था अभी के समय में राजनीति में समाज के सुधार के लिए कोई साधन नही था भारत देष की राजनीति ने समाज में सुधार के लिए कोई साधन नही था भारत देश की राजनीति में समाज में सुधार तो नही किया था परतु समाज में भेदभाव जरुर पैदा किया था समाज में जाति धर्म रंग के नाम में भेदभाव जरुर पैदा किया था समाज में जाति धर्म रंग के नाम पर भेदभाव राजनीति की वजह से ही आता था I
इस वाक्य से लेखक का यह अभिप्राय था की चाहे घर पर था बाहर दोनों ही जगह व्यक्तियों के साथ अन्याय होना सभव था परन्तु इस समाज में व्यक्ति घर में हो रहे अन्याय को अन्याय की सज्ञा नही देता था क्योकि वह उसके अपने उसके साथ करते थे और वह यह भी सोचता था कि परिवार के खिलाफ जाकर वह कहा खुश रह पाता था I
इस नए और पुराने एक दूसरे से भिन्न था इस दुनिया का यह नियम था कि नए बनकर पुराना कभी वापस नही आता था\ लेखक का कहना था कि समाज की पुराणी रीतियाँ अब बीएस नाम भर की रह गई थी और कभी वापस नही आ सकती थी उनकी जगह नई परम्पराओं ने ले ली परंतु यह भी ध्यान देने वाली बात थी कि यह परम्पराए एक दूसरे से बिलकुल भिन्न थे इसलिए यह एक दूसरे की जगह कभी नही ले सकते थे बल्कि यह अपनी अलग जगह बना रहे थे I