प्रस्तुत कविता के आधार पर कवि का तात्पर्य था कि बाहर के अँधेरे के कारण ही सुबह अपना रूप लेने में असमर्थ था यह अँधेरा इतना गहरा था कि खत्म ही नही होता था इसी वजह से सुबह के आने में बाधा आ रही थी कवि कहते थे कि हमारे दुःख स्वप्रो से ज्यादा भयानक तो यह बाहर का गहरा अँधेरा था क्योकि हमारे बुरे स्वप्रो की भाति समाप्त नही होता था I
कवि का मन भय से भरा हुआ था इस भय के कारण ही कवि सुनहली भोर का अनुभव नही हो पा रहा था क्योकि यह भय कवि के आँखों तक आशा की किरणों को पहुचने से रोक रहा था इसलिए कवि की आँखे हमेशा उस उषा के इंतजार में रहती थी जो उसकी आँखों को सुखद अहसास दिला सकता था I
कवि को आशा खोज रातभर भटकाती थी कवि हमेशा यही इच्छा करता था कि यह अँधेरा जल्दी खत्म हो और सुबह की किरणे हर तरफ बिखर जाती थी क्योकि बाहर के अँधेरे के कारण ही सुबह के आने में बाधा आती थी बाहर के घनघोर अँधेरे की वजह से ही सुबह आने में समर्थ नही था I
कवि का कहना था कि वह ये बात भली भांति समझते थे की बाहरी वातावरण के कारण हर मनुष्य प्रभावित होता था बाहर के अँधेरे के कारण मनुष्य भयभीत हो जाता था और फिर उसके मन को चिंताए घेर लेती थी कवि के अँधेरे के कारण भयभीत हो जाते थे और अँधेरे से बचने के लिए वह
निंद्रा लेना चाहते थे वह ऐसा इसलिए करना चाहते थे क्योकि ऐसा करने से उनकी चिंताए खत्म हो जाती थी I
कवि कहते थे कि उनके नेत्र जहां तक जाते थे वहां तक जाते थे वहां तक उन्हें पृथ्वी पर अंधकार ही दिखाई देता था इस घनघोर अँधेरे को समाप्त करने के लिए ही ज्योति चकफेरी दे रही थी क्योकि ज्योति इस अँधेरे को खत्म करके पृथ्वी को प्रकाश से भर देना चाहती थी I
इसका उत्तर आप स्वय करे I
इसका उत्तर आप अध्यापक से सलाह करके दे I
प्रस्तुत पक्ति में दिए गए शब्द अतनर्यंन का अर्थ मन की आँखे या अंतरदृष्टि होता था तथा तम की शिला का अर्थ अंधकार शिला होता था I