देश की पहली बोलती फिल्म के विज्ञापन के लिए छापे गए वाक्य इस प्रकार है – वे सभी सजीव थे साँस ले रहे थे शत – प्रतिशत बोल रहे थे अठ्हत्तर मुर्दा इनसान जिंदा हो गए थे उनको बोलते , बाते करते देखा था I
फ़िल्मकार अर्द्शिर एम. ईरानी ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म शो बोट देखी और तभी उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी थी इस फिल्म का आधार उन्होंने पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक से लिया था I
विद्टल को फिल्म से इसलिए हटाया गया था कि उन्हें उर्दू बोलने में परेशानी होती है पुन: अपना हक पाने के लिए उन्होंने मुकदमा कर दिया था विद्टल मुक दमा जीत गए थे और भारत की पहली बोलती फिल्म के नायक बने थे I
पहली सवाक फिल्म के निर्माता – निर्देशक अदेशिर को प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर सम्मानित किया गया था और उन्हें भारतीय सवाक फिल्मो का पिता कहा जाता था तो उन्होंने उस मोके पर कहा है मुझे इतना बड़ा ख़िताब देने की जरूरत नही थी
मूक सिनेमा ने बोलना सीखा था तो बहुत सारे परिवर्तन थे बोलती फिल्म बनने के कारण अभिनेताओं पढ़ा लिखा होना जरुरी हो गया था क्योकि अब उन्हें सवाद भी बोलने पड़ते है दर्शको पर भी अभिनेताओ का प्रभाव पड़ने लगा था I
फिल्मो ने जब अभिनेताओं को दूसरे की आवाज़ दी जाती थी तो उसे डब कहते थे कभी कभी फिल्मो में आवाज तथा अभिनेताओं के मुँह खोलने में अंतर आ जाता था क्योकि डब करने वाले और अभिनय करने वाले की बोलने की गति समान नही होती थी किसी तकनीकी दिक्कत के कारण हो जाता था I