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Welcome to the Chapter 9 - Aatamtaraan, Class 10 Hindi - Sparsh NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 9 - Aatamtaraan. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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कवि करुणामय ईश्वर से प्राथर्ना कर रहा था कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर चाहे ना रखे
पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सकता था दूखो में भी ईश्वर को ना भूले उसका विश्वास हटल रहता I
कवि का कहना है कि है ईश्वर में यह नही कहता कि मुझ पर कोई विपदा न आती मेरे जीवन में कोई दुःख न आए बल्कि में यह चाहता था कि में मुसीबत तथा दुखों से घबराऊ नही मुझ में सब कुछ सहन करने का साहस रहता था I
विकसित कठिनाईयों के समय सहायक के न मिलने पर कवि ईश्वर से प्राथर्ना करता था कि उसका बल पोरुष न हिले वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धेर्य से सह लेता था I
इस पूरी कविता में कवि ने ईश्वर से साहस और आत्मबल माँगा था अत में कवि अनुनय करता था कि चाहे सब लोग उसे धोखा देता था सब दुःख उसे घेर ले पर ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो जाए उसका विश्वास बना रहता था I
आत्मत्राण का अर्थ था आत्मा का त्राण अथार्त आत्मा या मन के भय का निवारण उससे मुक्ति त्राण शब्द का प्रयोग इस कविता के सदर्भ में बचाव आश्रय और भय निवारण के अर्थ में किया जा सकता था कवि चाहता था कि जीवन में आने वाले दुखों को वह निर्भय होकर सहन करता रहे I
1. कठिन परिश्रम और सघर्ष करते थे I
2. सफलता प्राप्त होने तक धेर्य धारण करते थे I
यह प्राथर्ना अन्य गीतों से भिन्न थी क्योकि अन्य प्राथर्ना गीतों से दास्य भाव , आत्म समर्पण समस्त दुखों को दूर करके सुखशांति की प्राथर्ना कल्याण मानवता का विकास ईश्वर सभी कार्य पूरे करता परन्तु इस कविता में कष्टों से छुटकारा नही कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्राथर्ना की गई थी I
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