कविता की पहली दो पक्तियों को पढने तथा विचार करने से बाल मजदूरी का चित्र उभरता था बच्चो के प्रति चिंता और करुणा का भाव उमड़ता था I
बच्चो को इस का जिम्मेवार समाज थे कवि द्वारा विवरण मात्र देकर उनके जरुरी आवश्यकताओ की पूर्ति नही की जा सकती थी इसके लिए लिए समाज को इस समस्या को जागरूक करने के लिए करना चाहिए था I
सुविधा और मनोरजन के उपकरणों से बच्चो के वचित रहने के मुख्य कारण सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक मज़बूरी थी समाज के गरीब तब के बच्चो को न चाहते थे I
इस उदारीनता के कई कारण थे लोग आत्मक्रेदित होने के साथ सवेदनहीन भी हो रहे थे उन्हें सिर्फ
अपने काम से मतलब होता था दुसरो के कष्टो को वे जानने समझने का प्रयास नही करता था I
मैंने अपने शहर में बच्चों को अनेक स्थलों पर काम करते देखा है। चाय की दुकान पर, होटलों पर, विभिन्न दुकानों पर, घरों में, निजी कार्यालयों में। मैंने उन्हें सुबह से देर रात तक, हर मौसम में काम करते देखा है।
बच्चे इस देश का भविष्य था यदि बच्चे पढ़ लिख नही पाते तब हमारे देश की आने वाली पीढ़ी भी पिछड़ी होगी थी देश का भविष्य अधकारपूण था I
आज मुझे स्कूल जाना था। मैंने होम वर्क भी पूरा कर लिया था। परंतु क्या करूं? पिताजी बीमार हैं। माँ उनकी देखभाल में व्यस्त हैं। न पिता काम पर जा पा रहे हैं और न माँ। माँ ने मुझे अपनी जगह बर्तन-सफाई के काम पर भेज दिया। मैं यह काम नहीं करना चाहती और उस मोटी आंटी के घर में तो बिलकुल नहीं करना चाहती जिसने दरवाजे पर कुत्ता बाँध रखा है। मेरे घुसते ही कुत्ता भौंकने लगता है। डरते-डरते अंदर जाती हूँ तो मालकिन ऐसे पेश आती है जैसे मैं लड़की ने हूँ, बल्कि उसकी खरीदी हुई गुलाम हूँ। सच कहूँ, मुझे ग्लानि होती है। अगर मजबूरी न होती, तो मैं काम-धंधे की ओर मुड़कर भी न देखती।
मेरे विचार से बच्चो को काम पर बिलकुल नही भेज जाना चाहिए था कारण बच्चो की ऊम्र कच्ची होती थी उनके मन भावुक थे बचपन खेलने खाने और सीखने की उम्र होती थी उन्हें पर्याप्त कोमलता और सरक्षण की आवश्यकता होती थी I