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Welcome to the Chapter 7 - Badal Rag, Class 12 Hindi - Aroh NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 7 - Badal Rag. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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अस्थिर सुख पर दुःख की छाया अस्थिर सुख दुःख की छाया विनाश की आशका को कहा गया है वे अपनी सुख – सुविधा के खोने मात्र से भयभीत रहते है उनका सुख अस्थिर है जिनके पास आवश्यकता से अधिक रहेता है जो समाज कि भलाई के लिए आवश्यक है और उसे खोने मात्र कि आशका उन्हें दुखी करती है I
अशनि – पात से शापित उन्नत शत शत वीर पक्ति में विरोधी गवीले वीरो कि और सकेत करती है जो क्रांति के वजाघात से घायल होता हो है बदलो के वजपात से उन्नति के शिखर पर पहुचे सेकड़ो वीर पराजित होकर मिटी में मिल जाते है बादलो कि गजना और मूसलाधार वर्षा में बड़े से बड़े पर्वत वृक्ष ख़राब हो जाते है उनका अस्तिव नष्ट होता है उसी प्रकार क्रांति की हुकार से पूजीपति का धन सम्पति तथा आदि का विनाश कर जाता है अथार्त उनके शोषण का अन्त करके जाता है I
विपल्व रव से छोटे ही है शोभा पाते पंक्ति में विपल्व रव से तात्पर्य होता है क्रांति I क्रांति जब आती है तब गरीब सामान्य वर्ग आशा से भरा रहेता है एव धनी पूजीपति वर्ग अपने विनाश की आशंका से भयभीत हो कर उठ जाता है छोटे लोगो के पास खोने के लिए कुछ भी नही उन्हें सिर्फ इससे लाभ
होगा इसीलिए कहा गया है कि छोटे ही है शोभा पाते जेसे भयकर आधी, तूफान के बीच छोटे – छोटे पोधे अपनी जड़ कभी भी नही छोडते है I
बादलो के आगमन से ससार में निम्नलिखित परिवर्तन होते है
- समीर बहने लगती है I
- बादल गरजने लगता है I
- मूसलाधार वर्षा होती है I
- बिजली चमकने लगती है I
- छोटे छोटे पोधे खिल उठते है मौसम सुहावना रहेता है I - गर्मी के कारण दुखी प्राणी बादलो को देखकर खुश होते है I
1 कवि बादल को सबोधित करते हुए कहता है कि है क्रांति दूत रुपी बादल तुम आकाश में ऐसे घूमते रहते है जेसे पवन रुपी सागर पर नोका तेर रही हो छाया उसी प्रकार पुजीपतियो के वैभव पर क्रांति की छाया मंडरा रहती है इसलिए कहा गया है अस्थिर सुख पर दुःख की छाया अथार्त उनके सुख अस्थिर है जो कभी नष्ठ नही होता है I
2 कवि कहते है कि पुजीपतियो के उच्चे – उच्चे भवन भवन नहीं होता है अपितु ये गरीबो को आतकित करने वाले भवन नहीं होते है इसमें रहने वाले लोग महान नही रहते है जल की विनाशलीला तो सदा पक को ही डूबोती है I
कविता में प्रकति का मानवीय किया जाता है I मुझे बादलो का गर्जन कर क्रांति लानेवाले रूप पसंद करता है क्योकि जिस प्रकार बादलो की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े बड़े पर्वत, वृक्ष घबरा जाते है उनको उखडकर गिर जाने का भय रहता है उसी प्रकार क्रांति की हुकार से पूजीपति घबरा उठते है वे दिल थाम कर रह जाते है उन्हे अपनी सपति एव सता के छिन जाने का भय रहता है I
.......ऐ विप्लव बादल
बार – बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार
हर्दय थाम लेता ससार
सुन सुन घोर व्रज हुकार I
तिरती है समीर – सागर पर
- अस्थिर सुख पर दुःख की छाया
- यह तेरी रण – तरी
- भेरी – गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
- ऐ विप्लब के बादल
- ऐ जीवन के पारावार
संबोधनों का औचित्य: कवि इन संबोधनों के द्वारा कविता की सार्थकता को बढ़ाना चाहता है। इन संबोधनों का प्रयोग करके कवि प्रकृति का सुंदर चित्रण बहुत सारे उदाहरणों के साथ करते हुए पाठको को समझाने की कोशिश करता है।
प्रश्न में दिए गये संबोधनों की व्याख्या निम्नलिखित है।
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अरे वर्ष के हर्ष ! |
ख़ुशी का प्रतीक |
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मेरे पागल बादल ! |
मदमस्ती का प्रतीक |
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ऐ निर्बध ! |
बंधनहीन का प्रतीक |
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ऐ स्वच्छंद ! |
आजादी से घूमने वाला |
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ऐ उद्दाम! |
निर्भय, भयहीन |
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ऐ सम्राट ! |
अति शक्तिशाली (जैसे कोई सम्राट हो ) |
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ऐ विप्लव के प्लावन! |
प्रलय या क्रांति |
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ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार ! |
बच्चों के समान चंचल चरित्र |
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