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Welcome to the Chapter 3 - Kavita Ke Bahane, Class 12 Hindi - Aroh NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 3 - Kavita Ke Bahane. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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कवि कहते हैं कि एक बार वह सरल सीधे कथ्य की अभिव्यक्ति करते समय भाषा को अलंकृत रखने के चक्कर में ऐसा फंस गया कि वह अपनी मूल बात को प्रकट ही नहीं कर पाया और उसे कथ्य ही बदला बदला सा लगने लगा है। कवि कहते है कि जिस प्रकार जोर जबरदस्ती करवाने से कील की चूड़ी मर जाती है और तब चूड़ी विहीन कील को सिर्फ ठोकना ही बाकि रह जाता है ना की उसे घुमाकर कसा जा सकता है, उसी प्रकार कथ्य के अनुकूल भाषा का प्रभाव नष्ट होना मतलब, अर्थ का अनर्थ होता हैI
बच्चे खेल खेल में अपनी सीमा अपने परायो का भेद भूल जाते है वे एक जगह से दूसरी जगह बिना विचारे दौड़ते रहते है उन्हें किसी के रोक टोक की चिंता नहीं होती है उसी प्रकार कविता भी शब्दों का खेल होता है इसका क्षेत्र व्यापक रहता है उसे किसी का भय नहीं होता है कलम को किसी बधन में बाधा नही जाता है अत: कवि को कविता करते वक्त अपने पराये या वर्ग विशेष का भेद अथवा बधन भूलकर लोक हित में कविता लिखवा लेनी चाहिए I
पछी की उड़ान और कवि की कल्पना की दोनों दूर तक रहेती है दोनों का लक्ष्य ऊचाई मापना होता है कविता में कवि की कल्पना की उड़ान रहती है जिसकी सीमा अनन्त रहेती है इसलिए कहते है जहां न पहुचे रवि वहां पहुचे कवि जिस प्रकार फूल खिलकर अपनी सुगध एव सौधर्य से लोगो को आनद प्रदान रहेता है नवजीवन देता है उसी प्रकार कविता भी सदेव खिली रहकर लोगो को भावो विचारो का रसपान कराती रहेती है पाठको में नवीन स्फूर्ति एव उर्जा का संचार कराती है I
कविता और बच्चे दोनों अपने स्वभाव वश के साथ खेलते है खेल खेल में वे अपनी सीमा अपने परायो का भेद भूल जाया करते है जिस प्रकार एक शरारती बच्चा किसी की पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार कविता में उलझा दी गई बात तमाम कोशिशो के बाबजूद समझने के योग्य नही रह जाती चाहे उसके लिए कितने ही प्रयास किये जाते है वह शरारती बच्चे की तरह हाथो से फिसली रहेती है प्रेमयुक्त आचरण एव शब्दों से बिगड़ी बात मनानी भी चाहिये I
कविता कालयजी रहेती है उसका मूल्य शाशवत होता है ये जब भी पढ़ी जाया करती है तब पाठको को आनंद से रखती है जेसे सर्दियों पूर्व लिखा गया सूर तुलसी का काव्य आज भी उतना आनन्द प्राप्त करता है जितना अपने समय में देता रहेता है जबकि फूल बहुत जल्दी मुरझा जाते है और शोभाहीन होकर अपनी सुन्दरता एव अस्तिव खो दिया करते है I
भाषा को सहूलियत से बरतने का आशय है सीधी , सरल एव सटीक भाषा के प्रयोग से है भाव के अनुसार उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने वाले लोग ही बात के धनी माने गये है I
बात और भाषा दोनों परस्पर जुड़े रहते है किन्तु कभी कभी कवि लेखक आदि अपने बात को प्रभाव ढग से बताने के लिए अपनी भाषा को ज्यादा ही अलकृत बना रहेता है या शब्दों के चयन में उलझ जाया करते है भाषा के चक्कर में वे अपनी मूल बात को प्रकट ही नही हो पाता है क्षोता या पाठक उनके शब्द जाल में उलझ कर रह जाते है और सीधी बात भी टेढी होया करती है I
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बिब/ मुहावरा |
सही विशेषता |
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बात की चूड़ी मर जाना |
बात का प्रभावहीन हो जाना |
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बात के पेच खोलना |
बात को सहज और स्पष्ट करना |
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बात का शरारती बच्चे की तरह ठोक देना |
बात का पकड़ में न आना |
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पेच को कील की तरह ठोक देना |
बात में कसावट का होना |
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बात का बन जाना |
कथ्य और भाषा का सही सामजस्य बनना |
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