Complete NCERT Solutions Guide
Access step-by-step solutions for all NCERT textbook questions
==================>>>1==================>>>2==================>>>3==================>>>4
Welcome to the Chapter 14 - Pahalwan Ki Dholak, Class 12 Hindi - Aroh NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 14 - Pahalwan Ki Dholak. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
Our solutions explain each answer in a simple and comprehensive way, making it easier for students to grasp key topics Pahalwan Ki Dholak and excel in their exams. By going through these Pahalwan Ki Dholak question answers, you can strengthen your foundation and improve your performance in Class 12 Hindi - Aroh. Whether you’re revising or preparing for tests, this chapter-wise guide will serve as an invaluable resource.
कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुटान के दाव –पेच में अदुत सामजस्य है लुटान को ढोल की प्रत्येक थाप एक नया दाव – पेच सिखाती है उसमे नवीन उर्जा और उत्साह का सचार करते है लुटान के ढोल की आवाज और उसकी कुश्ती के दाव – पेचो में अनोखा तालमेल है I
1. चट धा , गिड धा – आजा भिड जा I
2. चटाक चट धा – उठाकर पटक दे I
3. चट गिड धा – मत डरना
4. धाक धिना तिरकट तिना दाव काटो बाहर हो जाओ I
5. धिना धिना , धिख धिना – चित करो I
बीमारी ने आम जनता को अपने शिकंजे में कस लिया है I
1. लोगो को इन बीमारियों से लड़ने के लिए जाग्रत करना चाहिये I
2. इन बीमारियों से पीड़ित लोगो को उचित इलाज करवाने की सलाह देना है I
3. स्वच्छता अभियान में सहायता करुगा I
कला के मन में बसी हुई परिवार , धर्म , भाषा और जाति आदि की सीमाए को मिटाकर मन को विस्तृत प्रदान करते है कला ही है जिसमे मानव मन में सवेदनाए उभारने चितन को मोड़ने , अभिरुचि को दिशा देने की अदुत श्रमता होती है इसके मगलकारी प्रभाव से व्य्कतिव का विकास होता है जब यह कला संगीत के रूप में उभरती है तों वादन से सवय को ही नहीं श्रोताओ को भी अभिभूत करता है इसी मानव का कला के हर एक रूप काव्य , संगीत , चित्रकला , मूर्तिकला , स्थापत्य कला और रंगमच से अटूट सबध होता था I
कलाओ को फलने फूलने के लिए भले व्यवस्था की जरुरत महसूस करती है परन्तु कलाओं का अस्तिव केवल और केवल व्यवस्था का मोहताज़ नहीं था क्योकि यदि कलाकार व्यवस्था पोषित है और अपनी कला के प्रति समपिर्त नहीं था तो वह कभी भी जनमानस में अपना स्थान नहीं बना पाएगा और कुछ ही समय बाद गायब हो जाता है I
1. लुटन के माता पिता का बचपन में देहात हो गया है I
2. गाव के बच्चो को पहलवानी सिखायी I 3. अपने बच्चो की मृत्यु के असहनीय दुःख का सामना साहसपूर्वक किया I
4. उन्होंने बिना गुरु के कुश्ती सीखी थी I वे ढोल को अपना गुरु मानकर हरसमय उससे अपने समीप रखते है I
5. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगो में उत्साह का सचार किया उन्हें मृत्यु से लड़ने का साहस दिया I
लुटनने कुश्ती के दाव पेच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल आवाज़ या थाप पड़ती थी तो पहलवान की नसे उतेजित होता थी दाव पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होते है जब ढोल पर थाप पड़ती है I
गाव में महमारी और सूखे के कारण निराशजनक माहोल तथा मृत्यु का सन्नाटा छाया रहता है ऐसे दुःख के समय में पहलवान की ढोलक निराश गाव वालो के मन में जीने की उमंग जगती है I जेसे ढोलक उन्हें महामारी से कभी न हारने को पेरित करती है I
ढोलक की आवाज़ से रात की विभीषिका और दुःख का सनाटा कम रहता है महामारी से पीड़ित लोगो की नसों में बिज़ली सी दोड जाती थी उनकी आँखों के सामने दंगल का द्रश्य साकार होता है वे मानो मृत्यु अथवा बीमारी रुपी शत्रु से लेन के लिए तत्पर होते है I
महामारी फेलने के बाद गाव में सूर्यादय और सूर्यास्त के द्र्स्य में बड़ा अतर रहता है सूर्यादय के समय कोलाहल हाहाकार तथा ह्रदय विदारक रुदन के बावजूद भी लोगो के चेहरे पर जीवन कि चमक है लोग एकदुसरे को सात्वना बाधते थे और एक दुसरे के दुःख में शामिल होते है I
1. पहले मनोरजन के नवीनतम साधन अधिक न होने के कारण कुश्ती को मनोरजन का अच्छा साधन मानते है इसलिए राजा महाराजा कुश्ती के दंगलो का आयोजन रखते थे I
2. आज कुश्ती के स्थान आधुनिक खेल , फुटबॉल , टेनिस आदि खेलो ने ले लिया I
3. कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए हमें एक बार पुनः कुश्ती के दंगल आयोजनों पर बल देना होता है पहलवानों प्रशिश्रण उनके खान पान का उचित ख्याल आदि कुछ उपाय किये अधिक प्रचार प्रचार जाते है I
प्रस्तुत पक्ति का आशय लोगो के असहनीय दुःख से थे टूटते तारे के माध्यम से लेखक कहते है कि अकाल और महामारी से त्रस्त गाव वालो की पीड़ा को दूर करने वाला कोई नहीं रहता है प्रकति भी गाव वालो को दुःख से दुखी रहती है तारो की शक्ति का ताकिक्र एव मानवीय रूप से उलेख करते थे I
1. आशय – यह पर रात का मानवीकरण किया जाता है गाव में हेज़ा और मलेरिया फेलता है महामारी की चपेट में आकर ऐसे में ओस की बूंदे आसू बहाती सी प्रतीत होती है I
2. आशय – यहा पर तारो को हँसता हुआ दिखाकर उनका मानवीकरण करता है यहा पर तारे मजाक उड़ाते हुए प्रतीत होती है I
Join thousands of students who have improved their academic performance with our comprehensive study resources.