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Welcome to the Chapter 17 - Shireesh Ke Phool, Class 12 Hindi - Aroh NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 17 - Shireesh Ke Phool. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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आचर्य हजारी प्रसाद दिर्वेदी शिरीष को अदभूत मानते थे क्योकि सन्यासी की भाति वह भी सुख दुःख की चिता नहीं थी शिरीष कलयाज़ी अबधूत की भाति जीवन अजये मत्र का प्रचार होता था तब भी वह कोमल फूलो से लदा लहलहाता था I बाहरी गरमी , धूप , वर्षा आधी लू उससे प्रभावित नहीं थे I
मनुष्य को ह्र्दय की कोमलता को बचाने के लिए बाहरी तोर पर कठोर बनना पड़ता था ताकि वे विपरीत परिस्थी का सामना कर पाते और कठोर निर्णय ले सकते थे I
जब पृथ्वी अग्री के समान तप रही थी तब भी शिरीष का पेड़ कोमल फूलो से लदा लहलहाता
था बाहरी गरमी धूप, वर्षा आधी आधी लू उसे प्रभावित नहीं थी इतना ही नहीं वह लबे समय तक खिलाता था इसी तरह जीवन में किसी भी प्रकार की कठनाई क्यों न उत्पन्न हो जाए मनुष्य को शांत भाव से उस पर जीत हासिल करने का प्रयास करता है I
अवधूत सासारिक मोह माया से ऊपर उठा व्यक्ति था जो आत्मबल का प्रतीत था परंतु आज मानव आत्मबल की बजाय देहबल धनबल आदि जुटाने में लगे थे आज मनुष्य मूल्यों को त्यागकर
हिसा कलाबाज़ी घूसखोरी आदि गलत को अपनाकर अपनी ताकत एव श्रमता का प्रदर्शन करता था I
लेखक ने सहित्य कर्म के लिए बहुत ही ऊचा मानदड निधारित करते है क्योकि लेखक के अनुसार वही महान कवि बन सकता था जो अनासक्त योगी की तरह स्थिर तथा विदग्ध प्रेमी की तरह सहदय होता था I छद तो कोई भी लिख सकता था परन्तु उसका यह अर्थ नहीं कि वह महकवि नहीं थे I
मनुष्य को चाहिए कि वः स्वय को बदलते समय के अनुसार ढाल लेते है जो मनुष्य सुख दुःख , निराशा आशा आदि भाव से रहकर अपना जीवनयापन करता था वहि प्रतिकूल समय को भी अपने अनुकूल बनाता था वह शिरीष की तरह ही जीवी होता था I उन्होंने न केवल अपने जीवन में सरसता उत्पन की दूसरो के सामने इच्छाशक्ति का उदहारण भी प्रस्तुत करता था I
1. इन पक्तियों का आशय व्यक्ति के जीवन जीने की कला से थे लेखक के अनुसार दुरत प्राणधारा कालाग्री के मध्य सघर्ष निरतर चलता था जो बुदिमान थे वे इससे सघर्ष कर अपना जीवनयापन करते थे मूर्ख व्यक्ति यह समझते है कि वे जहां हे वहा डटे रहने से काल देवता की नज़र से बचते थे I
2. इन पक्तियों का आशय सच्चा कवि बनने से है लेखक के अनुसार यदि महान कवि बनना है तो अनासक्त और फक्कड बनाना होता था यदि वह अपने कर्यो का लेखा जोखा हानि लाभ मिलनर में उलझ जाते थे वह कवि नहीं बन पाते थे I
3. इस पक्ति का आशय सुदरता और सर्जन की सीमा से होता है लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि फल पेड़ और फूल इनका अपना अपना अस्तिव होता था I ये यू ही सम्पाप्त नहीं होते थे I
ज्येष्ठ माह में प्रचड गर्मी पड़ती थी लू के भयकर थपेडे चलते है फिर भी ऐसी गर्मी में तो इन कोमल फूलो को मुरझा जाना चाहिए था किन्तु ये खिले रहते है और यह तभी सभव थे I
गाधी जी ने जन सामान्य की पीड़ा से द्रवित होकर देश को आजाद करने का बीडा उठाया जो उनके कोमल स्वभाव का परिचायक था वही अग्रेजो के अत्याचारों के खिलाफ वे व्रज की भाति तनकर खड़े होते है जो उनकी कठोरता का प्रतिक था I
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