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Welcome to the Chapter 18 - Shram Vibhajan aur Jati Pratha, Class 12 Hindi - Aroh NCERT Solutions page. Here, we provide detailed question answers for Chapter 18 - Shram Vibhajan aur Jati Pratha. The page is designed to help students gain a thorough understanding of the concepts related to natural resources, their classification, and sustainable development.
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श्रम विभाजन मनुष्य की रूचि पर नहीं बल्कि उसके जन्म पर आधारित है जो उसका जातिवाद का पोषक होता है I
- व्यक्ति की योग्यता और श्रमताओ की उपेक्षा की जाती थी I
- व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसके माता पिता के सामाजिक स्तर के आधार पर उसका पेशा निधारित कर देता था I
- व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने या चुनने की अनुमति नहीं होती थी I
- सकट में भी बदलने की अनुमति नहीं हो बेरोजगारी या भूखो मरने की नोबत ही क्यों न आ जाये I
जाति प्रथा किसी व्यक्ति के पेशे का दोषपूर्ण तरीके से पूर्व निर्धारण ही नहीं करते थे बल्कि मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पेशे से बाध देती थी जो उसकी इच्छा या आवश्यकता के अनुकूल न होती है भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखो मर जाते थे आधुनिक युग में यह समय प्राय आता था क्योकि उधोग धधो की प्रकिया व् तकनीक में निरतर और कभी कभी अकस्मात परिवर्तन था जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती थी I आज लोग अपनी जाति से अलग पेशो को भी अपना रहता था I
लेखक के अनुसार दासता केवल क़ानूनी पराधीनता नही थी बल्कि इसकी व्यापक परिभाषा तो व्यक्ति को अपना पेशा चुनने की आजादी न देना अथवा अपने मनोनुकूल आचरण न करने देता था I
शारीरिक वश परपरा और सामाजिक उतराधिकार की मनुष्यों में असमानता सभावित रहने के बाबजूद अबेडकर समता को एक व्यवहार्य सिदात मानने के पीछे यह तर्क देते थे कि समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने के लिए सबको अपनी श्रमता को विकसित करने तथा रूचि के अनुरूप व्यवसाय चुनने की स्वतत्रता होती थी I
हम लेखक की बात से सहमत है कि उन्होंने भावनात्मक समत्व की मानवीय के तहत जातिवाद का उन्मूलन था किसी भी समाज में भावनात्मक समत्व तभी आ जाता है जब सभी को समान भोतिक सुविधाय उपलब्ध होती थी समाज में जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए समता आवश्यक तत्व था I मनुष्यों के प्रयासो का मूल्याकन भी तभी होता था I
आर्दश समाज के तीन तत्वों में से एक को रखकर लेखक ने अपने आर्दश समाज में स्त्रियों का स्पष्ट रूप से कोई उलेख तों नहीं करता परंतु स्त्री पुरुष दोनों ही किसी भी समाज के आवश्यक तत्व मानते थे अत स्त्रियो को समिलित करने या न करने की बात व्यर्थ और अनुचित होती थी I
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